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कविता संग्रह >> बिना मुँडेर की छत

बिना मुँडेर की छत

प्रेम रंजन अनिमेष

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13773
आईएसबीएन :9788126729739

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प्रेम रंजन अनिमेष भारतीय लोक की जड़ों में जीवित जिजीविषा के गायक हैं।

प्रेम रंजन अनिमेष भारतीय लोक की जड़ों में जीवित जिजीविषा के गायक हैं। उनकी कविताएँ हमारे आसपास फैली उन चीजों तक पहुँचती हैं जिन्हें हमने अब लगभग देखना बन्द कर दिया है लेकिन इसके बावजूद वे दुनिया को चलाए रखने में अपनी भूमिका निभा रही हैं। ये कविताएँ न किसी बड़े परिवर्तन का आह्वान करती हैं और न ऊँची हाँक लगाकर हमें कुछ ऐसा करने को कहती हैं जो हमें हमारे अतीत से काटकर किसी नए अनोखे संसार में स्थापित कर दे। भले ही वह कितना भी सुन्दर, कितना भी अद्भुत, कितना भी पूरा क्यों न हो। ये कविताएँ हमें अपने इसी अधूरे संसार में रच-बसकर जीने के सूत्र थमाती हैं। इसके दुखों की सुन्दरता, इसके अभावों का मोहक आकर्षण, इसकी विसंगतियों के भीतर छिपी आन्तरिक लय, और हर हाल में मौजूद उम्मीद, वे चीजें हैं जिन पर, लगता है कवि को आज के दावों-वादों की बड़बोली दुनिया में सबसे ज्यादा यकीन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यही यकीन इस देश का सबसे बड़ा संबल आज भी है जब हर तरफ किस्म-किस्म के उद्धारकर्ता अपने-अपने ढंग से अपना-अपना उद्धार कर रहे हैं। 'किसी बच्चे के कुछ सवाल लिए चला आया हूँ एक सहपाठी के इम्तिहान कैसे गए जानना चाहता हूँ...। (पहली गली), 'भरी हुई गाड़ी में कैसे कहाँ रखूँ टपटप चूता अपना छाता जो बचाकर यहाँ तक लाया? (मनुष्यता), 'इस विकसित तंत्र में है नहीं ऐसा जरिया जो पहुँचा पाए रास्ते में पड़े एक पाँव के जूते को उसके संगी तक...मैं ईश्वर को देखना चाहता हूँ इस नन्हीं दुनिया में अपने बड़े पाँव में एक नन्हा जूता पहने दूसरे की तलाश में... (एक पाँव का जूता)। धीमी आँच पर सिंकती-सेंकती ऐसी अनेक कविता-पंक्तियाँ, अनेक कविताएँ हैं जिन्हें आप उपलब्धियों की तरह हमेशा साथ रखना चाहेंगे। लोकभाव को बहुत गहरे में जीने और पुनर्रचित करने वाले प्रेम रंजन अनिमेष इस संग्रह में पुन: साबित करते हैं कि लोक-बिम्ब काव्य-प्रविधि मात्र नहीं हैं, वे वैकल्पिक जीवन-दृष्टि के संवाहक हैं।

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