गजलें और शायरी >> दश्त में दरिया दश्त में दरियाशीन काफ निजाम
|
0 |
निजाम साहब की कविताएँ मुझे सबसे पहले इसीलिए आकृष्ट करती हैं कि वे भारतीय रचनाये हैं।
निजाम साहब का काव्य मैंने पढ़ा भी है उनके गहन-गंभीर स्वर में सुना भी और इस अनुभव से बार-बार आप्यायित हुआ हूँ। निजाम साहब की कविताएँ मुझे सबसे पहले इसीलिए आकृष्ट करती हैं कि वे भारतीय रचनाये हैं। जिस संवेदन संसार में वे हमें आमंत्रित करती हैं वह हमारा जाना-पहचाना हैं और उसमें वह बड़ी सहजता से प्रवेश करते हैं। फिर जो देश-काल उनकी रचनाओं में गूंजता है वह भी हाम्र अपना सुपरिचित देश-काल हैं। हमें अपने को यह याद नहीं दिलाना पड़ता कि हम किसी सुन्दर मगर पराये बगीचे में झाँक रहे हैं। निजाम साहब के काव्य में एक और बात मुझे विशेष आकृष्ट करती है; वह है उसमें भावना और विचार का विलक्षण सामंजस्य। निजाम दूर की कौड़ी लाने वाले या उडती चिड़िया के पर काटने वाले शायर नहीं हैं। चमत्कारी बात उनकी अभीष्ट नहीं है। सीधा-साधा मानवीय सत्य कितना बड़ा चमत्कार होता है यह वह जानते हैं, और उसी को अपने भीतर से पाना, उसी को दूसरे के भीतर उतार देना उनका अभीष्ट है। गजल के स्वाभाव में ही यह चीज है कि उसका एक-एक शेर विचार अथवा भाव वास्तु की दृष्टि से एक मुक्तक होता है : लय अथवा तुक इन मुक्तकों को श्रृंखलित करती चलती है। विचारों अथवा भावो के जगत में मुक्त आसंगों की-सी एक निरायास यात्रा होती रहे इस उद्देश्य की पूर्ति निजाम की गजलें भी बखूबी करती हैं। कभी-कभी तो एक हे शेर पढ़कर पाठक गहरे में छुआ जाकर देर टार वहीँ निःस्तब्ध रुका रह सकता है-गजल इसकी छूट देती है। मेरा विश्वास है कि निजाम साहब का यह संग्रह हिंदी जगत में दूर-दूर तक पढ़ा जाएगा और सम्मान पायेगा; इतना ही नहीं, वह एक बहुत बड़े पाठक वर्ग का अपना हो जाएगा; अपना, आत्मीय और सखावत सहज आनंद देने वाला।
|