नाटक-एकाँकी >> दो व्यंग्य नाटक दो व्यंग्य नाटकशरद जोशी
|
0 |
*"राजनीति की असलियत को उजागर करते दो व्यंग्य नाटक—जहाँ मुसीबतें सामान्य जन की होती हैं और समाधान सत्ता के हाथों में।"*
शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य साहित्य के श्रेष्ठ सृजकों में से एक हैं। साहित्य की रचनात्मक मूल्यवत्ता के प्रति सतत जागरूक रहकर अपने परिवेश, जीवन और समाज की हर छोटी-बड़ी विसंगति को उघाड़ने और उसके मूल पर चोट करने में उन्होंने कहीं चूक नहीं की।
प्रस्तुत पुस्तक में शरद जी के दो व्यंग्य नाटक संगृहीत हैं—‘अन्धों का हाथी’ तथा ‘एक था गधा उर्फ़ अलादाद ख़ाँ।’ दोनों ही नाटक समकालीन राजनीतिक परिदृश्य को प्रस्तुत करने के साथ-साथ राजनीति की अविच्छिन्न अन्तर्धारा और वृत्तियों से गहरा परिचय कराते हैं। एक ओर जनसामान्य तो दूसरी ओर जन-विशेष। सामान्यजन को मूर्ख बनाए रखने तथा इस्तेमाल करते रहने का एक अन्तहीन दुश्चक्र राजनीति का स्वभाव, शौक़, ज़रूरत या कहें कि उसका मौलिक अधिकार है—विडम्बना यह कि वह भी कर्तव्यों की शक्ल में।
राजनीति के तहत सतत घट रही इस मूल्यहंता त्रासदी की गहरी पकड़ इन नाटकों में मौजूद है। लेखक ने सहज अभिनेय नाट्य-शिल्प और सुपाठ्य भाषा-शैली के सहारे अपूर्व व्यंग्यात्मक वस्तु का निर्वाह किया है।
|