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हिंदी कविता अभी बिल्कुल अभी

नन्दकिशोर नवल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13895
आईएसबीएन :9788126726905

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संवेदनशीलता के साथ स्पष्टता और आत्मीयता डॉ– नवल की ऐसी विशेषताएँ हैं, जिन्हें सराहते ही बनता है।

अपनी इस नई पुस्तक में नामवरोत्तर हिंदी आलोचना के अग्रगण्य आलोचक डॉ– नंदकिशोर नवल ने अपने समकालीन कवियों की कविता पर विचार किया है। ये वे कवि हैं, जिनके साथ वे उठे हैं, दौड़े हैं और झगड़े हैं। स्वभावतः इन कवियों पर लिखना अग्नि–परीक्षा से गुजरना था, लेकिन साहित्य की पवित्रता की पूरी तरह से रक्षा करते हुए वे उसमें सफल हुए हैं। कभी–कभी उन्होंने कवियों की त्रुटियों की ओर भी संकेत किया है, लेकिन उसका जरूरत से ज्यादा महत्त्व नहीं है, क्योंकि उनका लक्ष्य कवियों के वैशिष्ट्य का निरूपण रहा है और यह कार्य उन्होंने पूरे वैदग्य से किया है। एक पीढ़ी के कवियों की पारस्परिक भिन्नता को रेखांकित करना आसान नहीं है, लेकिन उनकी कविताएँ उनकी नसों में इस कदर प्रवाहित रही हैं कि उसमें उन्हें जरा भी दिक्कत नहीं हुई है। डॉ– नवल आलोचना साधारण पाठकों को सामने रखकर लिखते हैं। इतना ही नहीं, वे उनके साथ चलते हैं, उन्हें प्रासंगिक संस्मरण सुनाते हैं और घुमाते हुए कवि की संपूर्ण चित्रशाला का दर्शन करा देते हैं। वे उस आलोचना के सख्त खिलाफ हैं, जो कविता की जमीन छोड़कर चील की तरह आकाश की गहराइयों में उड़ती है और वहाँ उड़ते कीड़ों की जगह पाठकों का शिकार करती है। ऐसी आलोचना पाठकों को आतंकित जितना कर ले, उसकी मित्र और बंधु नहीं बन पाती। निश्चय ही आलोचना कविता को कहानी या यात्रा– वर्णन बना देना नहीं है, लेकिन यदि उसे ‘रचना’ का ओहदा प्रदान करना है, तो उसमें रचना जैसी संवेदनशीलता लानी होगी। संवेदनशीलता के साथ स्पष्टता और आत्मीयता डॉ– नवल की ऐसी विशेषताएँ हैं, जिन्हें सराहते ही बनता है। अंत में उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि ‘अब निर्मल जल–भर है, सेवार नहीं है।’

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