उपन्यास >> इदन्नमम इदन्नमममैत्रेयी पुष्पा
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हिंदी कथा-रचनाओं की सुसंस्कृत सटीक और बेरंगी भाषा के बीच गाँव की इस कहानी को मैत्रेयी ने लोक-कथाओं के स्वाभाविक ढंग से लिख दिया है
‘‘बऊ (दादी), प्रेम (माँ) और मंदा...तीन पीढ़ियों की यह बेहद सहज कहानी तीनों को समानांतर भी रखती है और एक-दूसरे के विरुद्ध भी। बिना किसी बड़ेबोले वक्तव्य के मैत्रेयी ने गहमागहमी से भरपूर इस कहानी को जिस आयासहीन ढंग से कहा है, उसमें नारी-सुलभ चित्रात्मकता भी है और मुहावरेदार आत्मीयता भी। हिंदी कथा-रचनाओं की सुसंस्कृत सटीक और बेरंगी भाषा के बीच गाँव की इस कहानी को मैत्रेयी ने लोक-कथाओं के स्वाभाविक ढंग से लिख दिया है, मानो मंदा और उसके आसपास के लोग खुद अपनी बात कह रहे हों-अपनी भाष और अपने लहज़े में, बुंदेलखंडी लयात्मकता के साथ...अपने आसपास घरघराते क्रेशरों और ट्रैक्टरों के बीच। ‘‘मिट्टी-पत्थर के ढोकों या उलझी डालियों और खुरदरी छल के आसपास की सावधान छँटाई करके सजीव आकृतियाँ उकेर लेने की अद्भुत निगाह है मैत्रेयी के पास लगभग ‘रेणु’ की याद दिलाती हुई। गहरी संवेदना और भावनात्मक लगाव से लिखी गई यह कहानी बदलते, उभरते, ‘अंचल’ की यातनाओं, हार-जीतों की एक निर्व्याज गवाही है...पठनीय और रोचक।’’
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