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जीवन यौवन
जीवन यौवन
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2007 |
पृष्ठ :198
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 13930
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आईएसबीएन :9788126713431 |
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‘जीवन यौवन’ अन्नदाशंकर राय की आत्मस्मृति है। इसमें उनका व्यक्तिचित्र अंकित है।
‘जीवन यौवन’ अन्नदाशंकर राय की आत्मस्मृति है। इसमें उनका व्यक्तिचित्र अंकित है। उनकी आशा-आकांक्षा, उनकी चिरन्तन नारी को खोजने की प्यास, उनकी सत्य को पाने की ललक, प्रशासनिक कामों में व्यस्त रहने के बाद भी अपनी लेखकीय सत्ता को बनाए रखने की प्रवृत्ति, उनका बचपन, उनकी छात्रावस्था, पढ़ने की निरन्तर ललक, अपनी भाषा की खोज, उसके लिए अपने पूर्वपुरुषों और समकालीन साहित्यिक दाय को आत्मसात करने का प्रयास, निरन्तर प्रश्नाकुलता, जिज्ञासाएँ, उनके दिगन्तरों की खोज - ये सब दिशाएँ उनके इस जीवन यौवन का आधार बनी हैं। इसमें लेखक ने अपनी सत्ता को, अपनी निजता को खोला है। इसमें ‘पथे-प्रवासे’ भी है और चिरन्तन पथ भी है, पथिक भी है, उसकी चिर-यात्रा भी है, जीवन भी है, जीवन को पार करता दूसरा छोर भी है। सरला की ओर उनका खिंचाव, प्रायः उसे नित्य पत्र लिखना, इसी पत्राचार के क्रम में उनकी गद्यभाषा में निखार आना, फिर और एक विदेशिनी के साथ लम्बे-लम्बे प्रवास, यूरोप को निकट से जानना, उन प्रश्नों को, जिज्ञासाओं को जिनसे यूरोप परिचालित हो रहा है - इन सब तरंगाघातों को इस पुस्तक में देखा जा सकता है। सत्य और स्वप्न के आकर्षण-विकर्षण से ही अन्नदाशंकर राय के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है जिसकी बहुविध झाँकी इस पुस्तक में मिलती है।
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