लोगों की राय

आलोचना >> कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिंतन

कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिंतन

नामवर सिंह

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13962
आईएसबीएन :9788126705634

Like this Hindi book 0

प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेखों को पढ़कर पाठक साहित्य और कला से संबंधित इन सभी मुद्दों से परिचित हो सकेगा।

कार्ल मार्क्स की दिलचस्पी के मुख्य विषय दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र थे, लेकिन प्रसंगतः उन्होंने कला और साहित्यशास्त्र की समस्याओं पर भी गंभीर और महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं। पिछले सात-आठ दशकों के दौरान इन बिखरे हुए विचारों को एकत्र करके उनकी मीमांसा करने का प्रयास लगातार चलता रहा और विश्व की अनेक भाषाओं में इस विषय पर बहुत कुछ लिखा गया तथा मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र का एक समग्र रूप विकसित किया गया। इस प्रक्रिया में मार्क्स के कला और साहित्य विषयक विचारों पर मार्क्सवादी और गैर-मार्क्सवादी दोनों ही तरह के लेखकों ने अपने विचार प्रकट किए हैं, और डॉ. नामवर सिंह द्वारा संपादित प्रस्तुत संकलन में इन दोनों ही धाराओं के लेखकों के विचारों को संकलित किया गया है। कार्ल मार्क्स ने कला और साहित्य विषयक जिन प्रश्नों पर विचार किया है, उनमें से कुछ हैंदृकला का मनुष्य के कर्म से संबंध; सौंदर्यशास्त्र का स्वरूप, कला के सामाजिक और रचनात्मक पहलू, सौंदर्यानुभूति का सामाजिक स्वरूप, विचारधारात्मक अधिरचना में कला; कला या साहित्यिक कृति का वर्गीय आधार और उसकी सापेक्षिक स्वायत्तता; कला का यथार्थ से सौंदर्यशास्त्रीय रिश्ता, विचारधारा और संज्ञान; पूँजीवादी व्यवस्था में कलात्मक सृजन तथा माल का उत्पादन, कला में दीर्घजीविता के तत्त्व और उपकरण, रूप और अंतर्वस्तु का रिश्ता; कला के सामाजिक उद्देश्य, कला की लौकिकता का स्वरूप, आदि। प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेखों को पढ़कर पाठक साहित्य और कला से संबंधित इन सभी मुद्दों से परिचित हो सकेगा। मोटे तौर पर यह पुस्तक मार्क्सवादी कला और साहित्य-चिंतन में होनेवाली बहसों से पाठक का परिचय कराएगी तथा एक हद तक इस विषय में उनकी दृष्टि निर्मित करने में भी मदद करेगी। इस पुस्तक से मार्क्सवादी साहित्य और कला-चिंतन की गहराई में जाकर उसका अध्ययन करने का रास्ता भी साफ होगा। सं.: नामवर सिंह सौंदर्यशास्त्र को व्यवहार से जोड़ देने से मार्क्स के समूचे दर्शन की तरह उनका सौंदर्यशास्त्र भी भाववादी सौंदर्यशास्त्र की अपेक्षा मूलगामी ढंग से एक भिन्न स्तर पर आ खड़ा होता है। फायरबाख के बारे में लिखी गई अपनी पहली थीसिस में मार्क्स ने भाववाद और पूर्ववर्ती भौतिकवाद के खिलाफ वस्तु और आत्मा के बीच ऐसे संबंध की धारणा प्रस्तुत की, जिसके अनुसार कलावस्तु एक उत्पाद, मनुष्य की एक ऐंद्रिय गतिविधि, एक व्यवहार और आत्म के वस्तुरूपांतरित व्यवहार के विस्तार रूप में देखी जा सकती है। अदोल्फो सांचेज़ वास्क्वेस मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र उस प्रश्न का हल ढूँढ़ लेता है, जिससे महान लोग एक अरसे से उलझते रहे हैं (और जो प्रश्न छोटे लोगों की समझ में इसलिए नहीं आता था कि वे छोटे लोग थे)। यह प्रश्न है, किसी कलाकृति के स्थायी सौंदर्यमूल्य को उस ऐतिहासिक प्रक्रिया का अंग बनाना जिससे वह कृति अपनी पूर्णता और सौंदर्यमूल्य में ही वस्तुतः अविभाज्य होती है। मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र सही ढंग से यह तथ्य पहचानता है कि चूँकि महान कलाकार गतिहीन वस्तुओं और स्थितियों को नहीं प्रस्तुत करता, बल्कि प्रक्रिया की दिशा और रुझान को व्यक्त करने की कोशिश करता है, इसलिए उसे इस प्रक्रिया के स्वरूप की अच्छी पकड़ होनी चाहिए और इस प्रकार की समझ, बिना पक्षधरता के नहीं आ सकती। कलाकार के सामाजिक आंदोलनों का अप्रतिबद्ध दर्शक होने की धारणा (फ्लाबेयर की ‘उदासीनता या अनुद्विग्नता’) अधिक से अधिक एक भ्रम या आत्मप्रवंचना है अथवा आम तौर पर, जीवन और कला के बुनियादी मसलों से किनारा करना है। ऐसा कोई महान कलाकार नहीं है जो यथार्थ को प्रस्तुत करते हुए अपने रुख, अपनी आकांक्षाओं और अपने उद्देश्यों को व्यक्त न करता हो।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai