उपन्यास >> खुले गगन के लाल सितारे खुले गगन के लाल सितारेमधु कांकरिया
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लोग मर रहे हैं, ऊब रहे हैं, घुट रहे हैं, लेकिन विद्रोह नहीं करते क्योंकि वे जीवन से प्यार नहीं करते ।
खुले गगन के लाल सितारे ‘‘–––क्या कहीं यह नहीं लगता कि जिन्दगी का कोई भी रास्ता बना–बनाया रास्ता नहीं हो सकता कि हमें अपनी संस्कृति, अपने इतिहास और अपने समाज के आलोक में अपना माओ, अपना लेनिन, अपना मार्क्स और अपना चे–ग्वारा स्वयं गढ़ना था । क्योंकि कोई भी क्रान्ति जब परम्परा एवं संस्कृति के अनुरूप ढलने की बजाय परम्परा एवं संस्कृति को ही अपने अनुरूप ढालने लगे तो वह लोगों के बीच जड़ नहीं जमा पाती । –––––––––––––––––––– ‘‘गल्तियाँ तो हमसे नो डाऊट हुई ही हैं, पर क्या यह भी सच नहीं है कि धार्मिक संवेदनाओं एवं भाग्य की क्लोरोफार्म सूँघकर बेसुध पड़े इस देश में सौ–सौ माओ और हजार–हजार लेनिन भी तब तक क्रान्ति नहीं ला सकते जब तक यहाँ धर्म की परिभाषाएँ नहीं बदल दी जाएँ । लोग मर रहे हैं, ऊब रहे हैं, घुट रहे हैं, लेकिन विद्रोह नहीं करते क्योंकि वे जीवन से प्यार नहीं करते । धार्मिक ग्रन्थों ने जाने कैसी वैराग्य की घुट्टी पिला दी है उन्हें कि वे जीए जाएँगे, बस जीए जाएँगे –––चाहे आप उनका सब कुछ छीन लें–––फिर भी वे जीते जाएँगे और गाते जाएँगे –––जे विधि राखे राम, से विधि रहिए।’’
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