इतिहास और राजनीति >> किसान आंदोलन: दशा और दिशा किसान आंदोलन: दशा और दिशाकिशन पटनायक
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किसानों के पक्ष में जूझनेवाले किसान नेताओं, अन्य परिवर्तनकारी आन्दोलनकारियों और बुद्धिजीवियों के लिए यह एक जरूरी किताब है।
किशन पटनायक की यह पुस्तक भारत के किसान आन्दोलन का उसके सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक और कुछ हद तक सांस्कृतिक आयामों में गहराई से विश्लेषण और मूल्यांकन प्रस्तुत करती है। लेखक की प्रतिष्ठा एक ऐसे समाजवादी चिन्तक और नेता के रूप में है जिसने उदारीकरण-ग्लोबीकरण यानी पूँजीवादी साम्राज्यवाद की सुचिन्तित समीक्षा तथा सतत् विरोध किया है। इस पुस्तक में भी किसान आन्दोलन का विश्लेषण मुख्यतः उदारीकरण-ग्लोबीकरण की नीतियों के सन्दर्भ में किया गया है, जिनके चलते भारत की खेती-किसानी तबाही के कगार पर पहुँच गई है और लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। किसान जीवन पर आए इस अभूतपूर्व संकट के दौर में लेखक ने साम्राज्यवादी पूँजीवाद का प्रतिकार करने के लिए देश में एक स्वतंत्र किसान राजनीति के निर्माण, विकास और संगठन की जरूरत पर बल दिया है। किसान राजनीति के अभ्युदय के लिए जरूरी वैकल्पिक विचारधारा के सूत्र और संघर्ष के तरीके भी सुझाए हैं। पुस्तक की यह महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि उसमें समाजवादी क्रान्ति के सन्दर्भ में किसान वर्ग की क्रान्तिकारी भूमिका स्वीकार की गई है, जो परम्परागत मार्क्सवादी सिद्धान्त के विपरीत मान्यता है। लेखक का इस विषय का निरूपण पर्याप्त ताजगी-भरा, प्रेरणाप्रद और प्रामाणिक है, जिससे अध्ययन और शोध की नई जमीन तैयार होगी। उदारीकरण-ग्लोबीकरण की सबसे ज्यादा मार झेल रहे किसानों के पक्ष में जूझनेवाले किसान नेताओं, अन्य परिवर्तनकारी आन्दोलनकारियों और बुद्धिजीवियों के लिए यह एक जरूरी किताब है। इसके साथ एक बड़ी पुस्तक ‘भारतीय राजनीति पर एक दृष्टि: गतिरोध, सम्भावना और चुनौतियाँ’ भी प्रकाशित हुई है।
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