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कविता संग्रह >> कोई तो जगह हो

कोई तो जगह हो

अरुण देव

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13998
आईएसबीएन :9788126724208

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अरुण देव अपने संयत स्वर और संवेदनशील वैचारिकता के नाते समकालीन हिन्दी कविता में अपनी जगह बना चुके हैं।

अरुण देव अपने संयत स्वर और संवेदनशील वैचारिकता के नाते समकालीन हिन्दी कविता में अपनी जगह बना चुके हैं। यह संकलन उनकी काव्य-दक्षता और संवेदना के और प्रौढ़ तथा सघन होने का प्रमाण है। ये कविताएँ आशंका के बारे में हैं, उम्मीद के बारे में हैं। स्मरण-विस्मरण के बारे में, स्त्रियों के बारे में और प्रेम के बारे में हैं। स्त्रियों के बारे में अरुण देव की कविताएँ अपनी वैचारिक ऊर्जा और ईमानदार आत्मान्वेषण के कारण अलग से ध्यान खींचती हैं। उनकी कविताओं में, प्रेम आत्मान्वेषण करता दिखता है, खुद के बारे में असुविधाजनक सवालों से कतराता नहीं। अरुण देव की कविताओं में पूर्वज भी हैं, और किताबें भी, जो - ‘नहीं चाहतीं कि उन्हें माना जाए अन्तिम सत्य’। ये कविताएँ उस सत्य के विभिन्न आख्यानों से गहरा संवाद करती कविताएँ हैं जो लाओत्जे और कन्फूशियस के संवाद में ‘झर रहा था / पतझर में जैसे पीले पत्ते बेआवाज’। अरुण देव की कविताओं से गुजर कर कहना ही होगा, ‘अब भी अगर शब्दों को सलीके से बरता जाए /उन पर विश्वास जमता है’।

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