लोगों की राय

बहु भागीय सेट >> पाप का घड़ा

पाप का घड़ा

विष्णु प्रभाकर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1405
आईएसबीएन :9788170284758

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

6 पाठक हैं

इसमें आठ उत्कृष्ट कहानियों का संग्रह है।

Pap Ka Ghada -A Hindi Book by Vishnu Prabhakar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो शब्द

प्यारे बच्चों ये कहानियाँ छोटे बच्चों के लिए नहीं है बारह वर्ष और उससे अधिक आयु वाले बच्चों के लिए यानि किशोरो के लिए हैं। यह सभी कहानियाँ हमने प्राचीन साहित्य धार्मिक लोक साहित्य में से चुनकर पाँच संग्रहों में संकलित की हैं। एक कहानी ऐतिहासिक युग की भी है। ये सब कहनियाँ में हमारी संस्कृति से परिचित कराती हैं। मनुष्य को कैसे रहना चाहिए। उसके कर्तव्य क्या है, इन बातों का हमें अपने जीवन जीने की राह दिखाता है। ‘ब्राह्मण कौन है, हमें क्रोध क्यों नहीं करना चाहिए, और ज्ञान का सहीं अर्थ क्या है।’ ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर इन कहानियों के व्दारा समझाएं गये है। जब तुम इन्हें पढ़ोगे तो तुम्हें पता लगेगा।

कई कहानियाँ बडी अनोखी हैं पढ़ना शुरू करोंगे तो समझ नहीं पाओगे, लेकिन अन्त में कहानीकार ने जब उन वाक्यों का सही अर्थ बताया है तब पता लगता है कि कितनी सही बात कही गई है। जैसे एक कहानी है, ‘धर्म का रहस्य।’
एक दिन एक परिवार में कम आयु के मुनि भिक्षा मांगने के लिए गये। उन्हें देखकर एक बहूं ने कहा ‘‘मुनिवर अभी तो सवेरा है ।’’

मुनि उत्तर दिया, ‘‘बहन मुझे काल का पता नहीं चलता’’ ।
फिर मुनि ने पूछा, ‘‘तुम्हारा पुत्र कितने वर्ष का है।’’
बहू ने उत्तर दिया, ‘‘सोलह वर्ष का।’’
मुनि ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति का आयु क्या है ?’’ बहू ने उत्तर दिया, ‘‘आठ वर्ष ।’’
मुनि ने पूछा और ससुर।’’
बहू बोली वह तो अभी पालने में ही झूल रहे हैं।’’

और भी ऐसे प्रश्न पूछे मुनि ने । बहू के ससुर सब कुछ सुन रहे थे। बड़ा क्रोध आया उन्हें घर की इज्जत खाक में मिला रही है जब मुनि भिक्षा लेकर चल गये तो वृद्ध पुरुष ने बहू को खूब डाटा। बहूँ ने शान्त भाव से कहा, ‘‘ आप मुझे डाँटे यह आपको शोभा नहीं देता, पिता जी मैं मुनि के प्रश्नों का उत्तर कैसे न देती। आप उनके गुरु के पास जाइये और उनसे कहिए कि वह मुनि फिर इधर न आवें।’’ वृद्ध पुरुष को यह बात जँच गई । वह ऐसे मुनियों को डाँटना भी चाहते थे। इसलिए व तुरन्त उनके गुरू के पास पहुँचे उनसे मुनि की शिकायत की। गुरु जी ने उन मुनि को बुला भेजा। मुनि ने सब बाते सुनकर पूछा, ‘‘गुरुजी भला इनसे पूछिए , मैंने कौन सी अशोभनीय बातें कीं।’’
वृद्ध ने कहा मेरी पुत्रवधू ने कहा, ‘‘अभी सवेरा ही है। इसने उत्तर दिया ‘मैंने काल को नहीं जाना।’ भला यह बात सच हो सकती है।’

शिशु मुनि बोले, ‘‘जी बहन ने मुझसे पूछा था, ‘आपने इस उभरती उम्र में संयास का कठोर मार्ग क्यों ग्रहण किया।’’मैंने उत्तर दिया ,‘बहन काल अर्थात् मृत्यु का तो कोई भरोसा नहीं।’ ‘गुरुदेव इसमें में तो कोई अशिष्ट बात नहीं है।’
वृद्ध ने कहा, ‘‘अच्छा इसे भी छोड़िये. मेरी पुत्रवधू ने अपने पुत्र की आयु सोलह वर्ष। , पति की आयु आठ वर्ष और मुझ वृद्ध पुरुष को पालने में झूलने वाला ही बताया था, भला यह बात सही कैसे हो सकती है ?’’

शिशु मुनि ने उत्तर दिया, ‘‘गुरुदेव मैंने बहन से पूछा था कि तुम्हारे घर में कोई ‘धर्मज्ञ’ है या नहीं, इस पर उसने उत्तर दिया । ‘मेरा पुत्र जन्म से ही धर्म-कर्म जानता है और उसकी आयु सोलह वर्ष है। मेरे पति पहले तो नास्तिक थे, किन्तु अब मेरे समझाने –बुझाने से वह भी धर्मनिष्ठ हैं, लेकिन मेरे ससुर आज भी धर्म की बात सुनना नहीं चाहते।’’ यह वृद्ध पुरुष धर्म का रहस्य जानते तो आपके पास आते ही नहीं।

‘‘यह सुनकर वृद्ध पुरुष लज्जित हुए। वह अब धर्म के रहस्य और शक्ति को समझ गए थे।’’
है ना यह कहानी पहेलियों जैसी, तो इन कहानियों के नाना रूप हैं। वह सब प्राचीन काल की संस्कृति पर प्रकाश डालती हैं।
इन कहानियों की पुस्तकों के साथ-साथ एक और पुस्तक है, ‘तपोवन की कहानियां ’ यो कहानियाँ दूसरी कहानियों से अलग हैं। उनके, त्याग और साधना पर प्रकाश डालती हैं। ये महर्षि आश्रमों और मठों में रहते थे। कुछ ऐसे आश्रम और मठ बन गए थे कि जो भी महर्षि उस गद्दी पर बैठता, वह उसी नाम से जाना जाता था। जैसे आज शंकराचार्य जी की गद्दी है। जो व्यक्ति उस पर बैठेगा, वह शंकराचार्य के नाम से ही जाना जाएगा। प्राचीन काल में भी ऐसी ही गद्दियाँ थीं या आश्रम थे। जैसे अगस्त मुनि, वशिष्ठ जी और ऋषि विश्वामित्र आदि। अगस्त मुनि का आश्रम हिमालय में ही माना जाता है, विन्ध्याचल पर्वत पर भी, तमिल प्रदेश में भी। और यहाँ तक कि भारत के बाहर इण्डोनेशिया में भी। अब एक ही व्यक्ति प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक कैसे रह सकता है। वशिष्ट जी और विश्वामित्रजी राजा हरिश्चनंद्र के समय में भी हुए हैं और राम के समय में भी। तो यह शंकराचार्य के समान गद्दियाँ थीं, -जो इन पर बैठता वह इसी नाम से पुकारा जाता था।

यह सब बातें तुम बड़े होकर ठीक-ठीक समझोगे, अभी तो तुम इन्हें पढ़ो और इनका अर्थ समझो, समय बदल गया है। कहानियाँ कहने का ढंग बदल गया है। जीवन के मूल्य भी बदल गए हैं, पर अपने प्राचीन साहित्य से परिचित होना भी आवश्यक है।

 

विष्णु प्रभाकर

 

पाप का घड़ा

 

दो व्यक्ति पास-पड़ोस में रहते थे उनमें एक धनवान था और दूसरा साधारण। धनवान व्यक्ति बहुत ही दयालु और परदुःखकातर व्यक्ति था। जनता उसका बड़ा आदर करती थी। लेकिन उसका पड़ोसी हमेशा उससे डाह रखता था। उसका धन उसे बहुत अखरता था और रात दिन वह इसी चिन्ता में रहता कि किसी तरह इस धनवान भले आदमी को नीचा दिखाऊँ।

एक दिन उसके घर में लड़के की शादी का प्रसंग आ गया। उसके पास पैसा नहीं था। वह अपने धनवान पडोसी के पास गया और अपने लड़के के लिए सोने के गहने माँगे धनवान ने तुन्त गहने दे दिये और उससे रुक्का लिखवा लिया।। विवाह होने के बाद गहने लौटा देने थे। लेकिन उस व्यक्ति ने ऐसा नहीं किया। एक-दो बार धनवान व्यक्ति ने उसे याद दिलाया, लेकिन वह बिगड़ उठा। बोला, ‘‘तुम्हारे गहने मैं कभी का लौटा चुका हूँ। क्या दो बार लेना चाहते हो ? धनवान व्यक्ति चकित रह गया. बोला, ‘‘तुमने मेरे गहने कब लौटाये ? तुम्हें झूठ नहीं बोलना चाहिए। यदि तुम गहने नहीं लौटाओगे तो मैं पंचायत बुलाऊंगा।’’


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai