उपन्यास >> नर नारी नर नारीकृष्ण बलदेव वैद
|
0 |
तुम यह सब कहो न कहो, सोच यही रहे हो, अब इस वक्त न सही, बाद में कभी किसी से या अपने आप से यही कहोगे! इसी पुस्तक से
...तुम चाहती हो, सीमा मुझे छोड़ दे? उस बेचारी की क्या मजाल! उसमें इतनी हिम्मत कहाँ! वह तुम्हारे बगैर रह कैसे सकती है! घटिया चोटें मत करो। साफ क्यों नहीं कह देते, मैं इसलिए तड़प रही हूँ क्योंकि तुमने मुझे ठुकरा दिया? तुम तो धुत्त होकर मुझसे गप्प लड़ाने आए थे क्योंकि तुम उदास थे, सीमा को याद कर रहे थे, चाहते थे कि उसकी सहेली के साथ एक आध पेग पीकर अपना और उसका मन बहला लेने के बाद कुछ और धुत्त होकर घर जाकर सुवीरा पर सवार हो सको, तुम्हें क्या पता था कि मैं सीमा की गैरहाजिरी का फायदा उठाना चाहती थी, तुम्हें अपने बिस्तर में ले जाना चाहती थी, इसीलिए मैंने यह लम्बी पारदर्शी नाइटी पहन रखी थी जिसमें मेरा सीना और मेरी जाँघें खूब खिलती हैं और जब मैंने देखा कि मेरे दाँव और मेरी अदाओं का तुम पर कोई असर नहीं हुआ तो मैंने तुम पर हमला कर दिया, क्योंकि मुझे मर्द को फाँसने का तरीका नहीं आता, क्योंकि मैं अपने सीने का इस्तेमाल करना भी नहीं जानती, अपनी खराब सूरत का तो खैर मैं कुछ कर ही नहीं सकती! तुम यह सब कहो न कहो, सोच यही रहे हो, अब इस वक्त न सही, बाद में कभी किसी से या अपने आप से यही कहोगे! इसी पुस्तक से
|