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पहर की पगडंडियाँ

प्रकाश थपलियाल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :110
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14116
आईएसबीएन :9788126716531

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थपलियाल की ये कहानियाँ कोरी रुमानियत वाली नहीं हैं बल्कि कदम-दर-कदम जीवन के तर्क के साथ आगे बढ़ती हैं।

पहाड़ चार आयामी होता है। उसमें लम्बाई-चौड़ाई के साथ-साथ ऊँचाई और गहराई भी होती है। इस भौगोलिक विशिष्टता के कारण वहाँ नजरिया भी कई कोण लिए होता है। पहाड़ की पगडंडियों पर चलने के लिए चाल में दृढ़ता जरूरी है और पाँव खास तरह की पकड़ माँगते हैं। प्रकाश थपलियाल की इन कहानियों में यह पकड़ है। ये पहाड़ की शृंखलाओं की तरह परत-दर-परत खुलती जाती हैं और हर कहानी नए गिरि-गह्वरों की सैर कराती जाती है। इनमें पहाड़ की मासूमियत और पगडंडियों के रास्ते गाँव-गाँव तक पहुँची तिकड़मी राजनीति एक साथ दिखाई देती हैं। फिर भी ये राजमार्ग और उसकी संस्कृति से काफी दूर और दुर्गम हैं। जीव-जगत के साथ मानवी अन्योन्याश्रितता को ये बखूबी रेखांकित करती हैं और यह बताती हैं कि किस तरह पहाड़ी जन-जीवन बाहरी दबावों से, शुरुआती संशय के साथ, ताल-मेल बैठाकर समायोजन और अनुकूलन करता जा रहा है। इन कहानियों में पर्वतीय जनजीवन अपनी कठिनाइयों, संघर्षों, ठिठोलियों और शहरों को अनोखे लगने वाले अपने पात्रों के साथ पाठकों के सामने उतर आता है। थपलियाल की ये कहानियाँ कोरी रुमानियत वाली नहीं हैं बल्कि कदम-दर-कदम जीवन के तर्क के साथ आगे बढ़ती हैं।

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