लोगों की राय

उपन्यास >> पुरोहित

पुरोहित

मायानंद मिश्र

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :316
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14216
आईएसबीएन :8171787231

Like this Hindi book 0

पुरोहित ऐतिहासिक औपन्यासिक कृतियों की शृंखला में ‘प्रथमं शैलपुत्री च’ तथा ‘मंत्रपुत्र’ के बाद ‘पुरोहित’ मायानंद मिश्र का तीसरा उपन्यास है

इस उपन्यास की कथा पूर्व उत्तरवैदिक काल के संधि संक्रमणकालीन ब्राह्मण युग (ई.पू. 1200 ई. से ई.पू. 1000 ई. तक) के भारत की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन-परंपरा की जटिल गुत्थियों को बहुत ही बारीकी से खोलती और विश्लेषित करती है। इस काल की महत्ता लेखक के शब्दों में: ‘‘वस्तुतः स्वयं भारतवर्ष तथा उसकी ‘आत्मा’ का जन्म इसी ब्राह्मण काल में हुआ है। आज जो भी भारत में है, चाहे वह भौतिकता का विकास हो अथवा आध्यात्मिकता का उत्कर्ष, वह इसी काल की देन है।’’ प्रामाणिक ऐतिहासिक साक्ष्यों को आधार बनाकर उस काल में आर्यावर्त के विभिन्न जनपदों में कायम शासन प्रणाली और उसकी व्यवस्था में आ रहे परिवर्तन का लेखक ने बड़ा ही जीवंत चित्रण किया है। इस उपन्यास से उस काल के शिक्षा-कर्म, पौरोहित्य-कर्म, कृषि-कर्म, राज-काज और जीवन-दर्शन का स्वाभाविक परिचय मिलता है। काल-पात्र अनुकूल शब्दावली को काव्यात्मक सरस भाषा में ढालकर रोचक प्रवाह कायम रखना मायानंद मिश्र की चिर-परिचित विशेषता है जिस कारण उपन्यास में सर्वत्र गजब की पठनीयता बनी रहती है। मेधा और कुशबिंदु के सहज स्वाभाविक प्रेम और चुहल के साथ उसकी कर्त्तव्यनिष्ठा और व्यावहारिकता ही नहीं; अथर्वण ऋताश्व, आचार्य गालब, आचार्य श्रुतिभव, आचार्य चाक्रायण आदि की जीवन-साधना और उनके दर्शन से संबंधित विभिन्न प्रसंग उस काल की विभिन्न स्थितियों-परिस्थितियों की सूचना और वैचारिक उत्तेजना देते हैं।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book