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रास्ते
रास्ते
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 1999 |
पृष्ठ :87
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 14219
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आईएसबीएन :0 |
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रास्ते' प्रतिबद्धता के अलग-अलग रंगों और स्तरों के आपसी द्वंद्व की कहानी कहने वाला नाटक है
विभिन्न विचारधाराओं और वैचारिक निष्ठा के विभिन्न आयामों के कई सारे रास्ते यहाँ, इस नाटक के मंच पर आकर मिलते है। संघ बनाम कांग्रेस बनाम साम्यवाद की तीखी, आक्रामक बहसें यहाँ है तो सूत्रधार के रूप में तकरीबन तटस्थ उदारवाद का निर्लिप्त-सा दिखने वाला दृश्यावलोकन भी है और सशस्त्र क्रांति में यकीन रखने वालों की एकरेखीय निर्द्वद्व प्रतिबद्धता भी है। लेकिन इन सारे रास्तों को एक सीधी प्रकाश-किरण की तरह बींधकर निकल जाने वाली है दुर्गा जिसके लिए अपने वजूद और अपने विचार में भेद करना असंभव है। उसका अपना एक रास्ता है जो विचार और कर्म के इसी अद्वैत से जन्म लेता है। सत्य और संपूर्ण के लिए उसकी बेचैनी के सम्मुख पहले के उपलब्ध, अत्यंत वाचाल और स्थापित रास्ते सहसा छोटे पड़ जाते हैं. और जब वह अपने अलग रास्ते पर किसी अजानी जगह पर कुर्बान हो रही होती है तो वे तमाम रास्ते और उन पर चलने वाले सब जन दुःख और विस्मय में डूबे सिर्फ खड़े रह जाते हैं। अत्यंत सघन तनाव के साथ अपनी विषय-वस्तु से जूझने वाले गो. पु. देशपांडे के मूल मराठी नाटक के इस हिंदी अनुवाद की सिर्फ रा. ना. वि. रंगमंडल ही दर्जन से ज्यादा प्रस्तुतियाँ दे चुका है। पुस्तक रूप में यह पहली बार आ रहा है।
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