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सानशोदायु
सानशोदायु
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 1998 |
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 14256
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आईएसबीएन :0 |
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ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रची गई ये कहानियाँ 'सूर्योदय के देश' के सामंती युग के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती हैं।
जापान' का नाम सुनते ही आज आधुनिकता, समृद्धि और चकाचौंध का विचार कौंधता है। लेकिन, सौ बरस पहले का जापान कत्तई अलग था। इस संकलन में शामिल मोरी ओगाई (1862 - 1922) की तीन कहानियाँ तत्कालीन जापान की एक दूसरी तस्वीर पेश करती हैं। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रची गई ये कहानियाँ 'सूर्योदय के देश' के सामंती युग के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती हैं। सानशोदयु, अँधेरे में एक नाव चलती थी और आखिरी पंक्ति आपराधिक कथानकों के जरिए तत्कालीन राज और समाज की विदूपताओं को एक-एक कर सामने लाती हैं। लेकिन, ये कहानियाँ आपराधिक दृष्टांत मात्र नहीं हैं। सानशोदायु और आखिरी पंक्ति में आप पाएँगे कि किस तरह बाल चरित्र सामाजिक विसंगतियों से मुकाबले के लिए ऐसे वक्त में उठ खड़े होते हैं, जब उनके अग्रज व्यवस्था के सामने हथियार डाल देते है। नन्हें चरित्र तत्क्षण महाकार ले लेते हैं। वे जापानी समाज को 'आत्मबलिदान' जैसी सर्वथा नई अवधारणाएँ सिखाते हैं। 'अंधेरे में' कहानी जापानी जनमानस पर बौद्ध मत के प्रभाव को खासकर उकेरती है। इसलिए यह भारतीय पाठक को खासकर अपील करेगी। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में अवतरित इन कहानियों के जरिए जापान के सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक जीवन दर्शन को जानने का अवसर प्राप्त होगा। कहानियों के साथ प्रविष्ट टिप्पणियाँ पाठकों की जिज्ञासा के अनुरूप दी गई हैं।
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