आलोचना >> शब्द परस्पर शब्द परस्परनिरंजन देव शर्मा
|
0 |
कृष्णा सोबती के समग्र रचनात्मक अवदान पर केन्द्रित मुकम्मल किताब, बल्कि किताबों की जरूरत बनी हुई है, निरंजन देव की ‘शब्द परस्पर’ इस जरूरत को पूरी करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।
कृष्णा सोबती अद्वितीय लेखिका हैं। कहानी, उपन्यास, संस्मरण, साक्षात्कार, संवाद जिस भी विधा में उन्होंने काम किया, विलक्षण किया। शब्द की सत्ता पर उनका विश्वास अटूट है, और साहित्यिक तथा वास्तविक जीवन-व्यवहार में मानवीय मूल्यों के प्रति उनका आग्रह अबाध। वे अपने मूल्यों को लेखक के तौर पर भी जीती हैं, और नागरिक के तौर पर भी। जैसा कि इस पुस्तक में निरंजन देव ने लक्ष्य किया है, ‘शब्द कृष्णा सोबती की ताकत रहे हैं और उनके विरोध और औजार भी... केवल रचनात्मक लेखन में नहीं, बल्कि पत्र तक प्रेषित करने के मामले में वह शब्दों की ताकत और उनके चयन को लेकर सजग रही हैं।’ कृष्णा सोबती की विलक्षण उपस्थिति हिंदी समाज को उचित गर्व का कारण देती है। निरंजन देव ने इस विलक्षण उपस्थिति के सभी पहलुओं को परखने की कोशिश की है। आरंभिक कहानियों से लेकर कृष्णा सोबती के हशमत अवतार तक पर, ‘बुद्ध का कमंडल’ तक पर निरंजन ने संवेदनशील आलोचनात्मकता से संपन्न विचार किया है। यह विचार कृष्णा सोबती के लेखकीय विकास का प्रमाणिक चित्र प्रस्तुत करने के साथ ही, उनके साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकारों का विश्वसनीय लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है। कृष्णा सोबती के समग्र रचनात्मक अवदान पर केन्द्रित मुकम्मल किताब, बल्कि किताबों की जरूरत बनी हुई है, निरंजन देव की ‘शब्द परस्पर’ इस जरूरत को पूरी करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। मुझे विश्वास है कि कृष्णा सोबती के पाठकों के बीच यह एक जरूरी किताब मानी जाएगी।
|