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शोकनाच
शोकनाच
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2004 |
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 14289
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आईएसबीएन :8126708212 |
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युवा कवि आर. चेतनक्रांति का यह पहला संग्रह जवाबदेह भाषा और फ़ॉर्म के साथ-साथ हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में नए मुहावरे ईज़ाद करने के कारण अपनी मौलिक पहचान बनाता है।
युवा कवि आर. चेतनक्रांति का यह पहला संग्रह जवाबदेह भाषा और फ़ॉर्म के साथ-साथ हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में नए मुहावरे ईज़ाद करने के कारण अपनी मौलिक पहचान बनाता है। चेतन की भाषा में एक खास तरह काव्यंग्य है जो विडम्बनाओं एवं विद्रूपताओं की खिल्ली उड़ाता चलता है। जो लोग कविता (साहित्य) को मनोरंजन की चीज समझते हैं उन्हें चेतन की कविताएँ निराश करेंगी क्योंकि ये कविताएँ पाठकों का टाइम पास नहीं करतीं बल्कि रचनात्मक उत्तेजना और बेचैनी से भर देती हैं। अपने कठिन समय की जटिल मानव-स्थितियों की जरूरी पड़ताल करती ये कविताएँ उन अवरोधक शक्तियों की भी शिनाख्त करती हैं जो सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन की सहजता को अपने ढंग से नियन्त्रित करना चाहती हैं। कवि के गहरे सरोकारों के दायरे में रिक्शेवाले, दैनिक वेतनभोगी, भूखे बच्चे एवं भूकम्प पीड़ित हैं तो दूसरी तरफ ‘सीलमपुर की लड़कियां’ भी हैं जिन्होंने अपनी हजारसाला पुरानी आत्माओं को उतारकर चुपके से एक नया सपना देखने का जोखिम उठाया है। चेतन कविता और औसत राजमार्ग से अलग इस कठिन समय में अपनी रचनात्मक बेचैनी के साथ एक अलग और नया रास्ता बनाते हैं जो कतार के आखिरी आदमी के सपनों तक पहुँचता है और उसकी संवेदना से स्वयं को जोड़ता है। लेकिन चेतन अनुभूतियों के ही नहीं, दृढ़ विचारों और स्पष्ट ‘विजन’ के कवि हैं।
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