उपन्यास >> सुर्ख और स्याह सुर्ख और स्याहस्टेंढल
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स्तान्धाल ने इस उपन्यास में तत्कालीन फ्रांस की तस्वीर को व्यापक फलक पर उपस्थित किया है।
इस उपन्यास की शुरुआत में स्तान्धाल ने दांतों की इस उक्ति को आदर्शवाक्य के रूप में दिया है, ''सच; बस तल अपने पूरे तीखेपन के साथ: और फिर पूरा उपन्यास मानो इस पुरालेख का औचित्य सिद्ध करने में लगा दिया है। किसानी धूर्तता से भरा हुआ, नायक जुलिएं सोरेल का लालची बाप, भरे-पेट और चैन-भरे जीवन की चाहत रखनेवाले मठवासी, अपने ही देश पर हमले का षड्यंत्र रच रहे प्रतिक्रान्तिकारी अभिजात, अपने फायदे के लिए पूणित अवसरवादी ढंग से राजनीतिक दल बदलते रहनेवाले रेनाल और वलेनो जैसे लोग-उत्तर-नेपोलियनकालीन फ्रांस में जारी घिनौने नाटक के लगभग सभी केन्द्रीय पात्र यहाँ मौजूद हैं। आम तौर पर पूरा परिदृश्य नितान्त निराशाजनक है। इसके साथ ही वेरियेरे का औद्योगीकरण, मुद्रा की बढ़ती सर्वग्रासी शक्ति, बुर्जुआ नवधनिकों द्वारा पुराने अभिजातों की नकल की भौंडी कोशिशें, बे-ल-होत में मठ के पुनर्निर्माण के पीछे निहित प्रचारवादी उद्देश्य, जानसेनाइटों और जेसुइटों के झगड़े, जेसुइटों की गुज सोसाइटी का सर्वव्यापी प्रभाव और धर्म सभा आदि के ब्योरों से स्तान्धाल ने इस उपन्यास में तत्कालीन फ्रांस की तस्वीर को व्यापक फलक पर उपस्थित किया है। जुलिएं सोरेल अपने ऐतिहासिक युग का एक विश्वसनीय प्रातिनिधिक चरित्र है जिसमें एक ही साथ, नायक और प्रतिनायक-दोनों ही के गुण निहित हैं। अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए और उद्देश्यपूर्ति के लिए वह नैतिकता-अनैतिकता का ख्याल किये बगैर कुछ भी करने को तैयार रहता है। यह खोखले और दम्भी-पाखण्डी बुर्जुआ समाज के ऊँचे लोगों के प्रति उसके उस सक्रिय-ऊर्जस्वी व्यक्तिवादी व्यक्तित्व की नैसर्गिक प्रतिक्रिया है जो महज सामान्य परिवार में पैदा होने के चलते एफ गुमनाम, मामूली और ढर्रे से बँधी जिन्दगी जीने के लिए तैयार नहीं है। वह उस समाज के विरुद्ध हर तरीके से संघर्ष करता है जहाँ महज कुल और सम्पत्ति के आधार पर पद, सम्मान और विशिष्टता हासिल हुआ करती है।
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