आलोचना >> वंचितों के कथाकार वंचितों के कथाकारसोमा वंद्योपाध्याय
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हिंदी एवं बंगला के दो प्रमुख कथा-साहित्यकार फनीश्वरनाथ रेणु एवं ताराशंकर बंधोपाध्याय जो आंचलिक उपन्यासकार के रूप में भी ख्याति प्राप्त कर चुके हैं, इनके साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन कर हिंदी व बांग्ला के पाठकों को प्रोत्साहित करना ही मेरा मुख्य ध्येय है।
हिंदी एवं बंगला के दो प्रमुख कथा-साहित्यकार फनीश्वरनाथ रेणु एवं ताराशंकर बंधोपाध्याय जो आंचलिक उपन्यासकार के रूप में भी ख्याति प्राप्त कर चुके हैं, इनके साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन कर हिंदी व बांग्ला के पाठकों को प्रोत्साहित करना ही मेरा मुख्य ध्येय है। मैं यह भी आशा करती हूँ कि यह तुलनात्मक अध्ययन अन्तःप्रान्तीय भाषाओँ के संपर्क को और अधिक दृढ़ बनाएगा एवं देश के दो प्रान्तों के पाठकवर्ग के बीच एक भावात्मक एकता स्थापित करने में सफल होगा। साथ ही, साहित्य के प्रति उनके मन की अनन्त जिज्ञासा को भी मिटा सकेगा। बांग्ला के ताराशंकर बंधोपाध्याय द्वारा लिखित 'गणदेवता' व् 'हाँसुली बाँकेर उपकथा' एवं हिंदी के सर्वश्रेष्ठ आंचलिक उपन्यासकार फनीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास 'मैला आँचल' एवं 'पार्टी परिकथा' बांग्ला व् हिंदी साहित्य की दुर्लभ सम्पदा बन गए हैं। ताराशंकर के उपन्यास तथा रेणु के उपन्यासों का पाठ करने के पश्चात् मैंने पाया कि इनके उपन्यासों में समता अधिक है। रेणु के उपन्यास 'मैला आँचल' में वर्णित 'मेरीगंज' की कहानी केवल बिहार की ही नहीं बल्कि बंगाल के वीरभूम जिला स्थित किसी गाँव की ही कहानी लगती है, जहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व व् उसके पश्चात होनेवाले आमूल परिवर्तनों को दिखाया गया है। युग-सचेतन, ज्ञानवान और संवेदनशील लेखकद्वय ने एक ओर जहाँ, नये समाज में विकसित हुए पिछड़े वर्ग का चरित्र उद्घाटित किया है, वहीँ दूसरी ओर अपनी अभिव्यक्ति को बिलकुल यथार्थ की भूमिका पर प्रस्तुत करते हुए उसके द्वारा नए-नए आयामों की खोज भी की है।
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