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विजेता
विजेता
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2003 |
पृष्ठ :322
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 14384
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आईएसबीएन :8126704365 |
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नऐ-पुराने के बीच जो संघर्ष अविराम जारी था, उसका लेखक ने विश्वसनीय और जीवंत चित्र उपस्थित किया है।
‘विजेता’ और इसकी अगली कड़ी ‘तूफान झुका सकता नहीं’ नामक उपन्यासों में उज्बेकिस्तान के एक ग्राम-सोवियत की जनता को एकजुट सामूहिक श्रम और सामूहिक मेधा एवं कौशल से, खाली पड़ी धरती को ख्ेाती योग्य बनाते हुए, क्रान्तिविरोधी बसमाचियों द्वारा बन्द कर दिए गए कोकबुलाक चश्मे के उद्गम को खोजकर उसे फिर से चालू करते हुए और सामूहिक फार्मों के उत्पादन को तरह-तरह से आगे बढ़ाते हुए विस्तार से चित्रित किया गया है। आर्थिक सम्बन्धों के रूपांतरण के साथ ही जो नई सामाजिक-सांस्कृतिक-नैतिक-सौन्दर्यशास्त्रीय मूल्य-मान्यताएँ, सम्बन्ध और संस्थाएं अस्तित्व में आ रही थीं तथा नऐ-पुराने के बीच जो संघर्ष अविराम जारी था, उसका लेखक ने विश्वसनीय और जीवंत चित्र उपस्थित किया है। कथा के फलक पर पार्टी और प्रशासकीय मशीनरी कीवह नौकरशाही भी मौजूद है। क्रांति-प्रर्वू समाज के अवशेष कुछ षड्यंत्रकारी विध्वंसक तत्व भी मौजूद हैं जो पुरानी पीढ़ी के कुछ लोगों की रूढ़िवादिता और नौकरशाही की हठधर्मिता का लाभ उठाकर सार्वजनिक संपत्ति और समाजवाद को नुकसान पहंुचाने की कोशिश करते हैं। पुराने मूल्यों और रूढ़ियों से चिपके कुछ पुराने लोग भी हैं जो धीरे-धीरे बदलते हैं। लेकिन नए और पुराने के बीच का संघर्ष लगातार चलता रहता है। इन सभी प्रवृत्तियों की पारस्परिक अंतर्क्रिया और संघात के रूप में आगे बढ़ते घटना-क्रम के बीच से नई दुनिया के उन नए नायकों के उदात्त, मानवीय चरित्र उभरते हैं जो पंूजी की संस्कृति के बरअक्स श्रम की संस्कृति की नुमाइंदगी करते हैं।
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