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उपन्यास >> यारों के यार

यारों के यार

कृष्णा सोबती

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14402
आईएसबीएन :9788126707935

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वास्तविकता के एक-एक शेड को कम-से-कम शब्दों में पकड़कर सँजो देने में माहिर कृष्णा जी की भाषा इस कृति में भी अपने रचनात्मक शिखर पर है।

राजधानी का एक सरकारी दफ्तर, उसकी आबो-हवा और वहाँ काम करने वाले लोगों की रग-रग का हाल। वास्तविकता के एक-एक शेड को कम-से-कम शब्दों में पकड़कर सँजो देने में माहिर कृष्णा जी की भाषा इस कृति में भी अपने रचनात्मक शिखर पर है। उनकी तमाम कृतियों की तरह यह उपन्यास भी उनकी इस धारणा की पैरवी करता है कि 'किसी भी व्यक्ति के लिए, जिसकी मूल और आन्तरिक प्रेरणा सत्य है, केवल साहित्य ही एक ऐसा कवच है, जिसके भीतर वह अपनी अस्मिता को सुरक्षित रख सकता है।'

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