आलोचना >> दादू जीवन दर्शन दादू जीवन दर्शनबलदेव वंशी
|
0 |
संत दादू की जीवन कथा
री दादूजी महाराज की वाणी काव्यमयी है। अतः महाराज की वाणी काव्य है। श्री दादूजी महाराज और कबीरजी में प्रकृति भेद के कारण दोनों के व्यक्तित्व में स्वभावतः भेद आ गया है। वैसे उनके विचारों और सिद्धांतों में कोई भेद नहीं है। दोनों ही संत ज्ञानाश्रयी धारा के अग्रणी संत हैं। दोनों का मार्ग भक्तिमार्ग है। दोनों ने ही जहां हिन्दु और मुसलमानी मजहबों की आलोचना की है वहीं दोनों ने भारतीय दार्शनिकों आक्र भक्तों के विचारों को स्वीकार किया है। हम पहले ही कह चुके हैं कि यद्यपि श्री महाराज ने अपनी वाणी में बार-बार भक्तों और संतों के नामों का आदरपूर्वक स्मरण किया है, उनकी वाणी में गोरखनाथ, नामदेव, कबीर, पीपा, रैदास आदि के नाम बार-बार आये हैं; किन्तु उनकी श्रद्धा कबीर में अधिक हैः- सांचा शब्द कबीर का, मीठा लागे मोय। दादू सुनतां परम सुख, केता आनन्द होय।
|