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छायावाद का रचनालोक

रामदरश मिश्र

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14424
आईएसबीएन :978-81-8143-97-

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छायावाद के प्रयोग पर आधारित कृतियाँ

प्राचीन काल में शाप चाहे जिसे भी खाता रहा हो, आजकल तो वह शाप देने वाले को ही खा बैठता है क्योंकि शाप को कुछ खाना चाहिए। जिस पर शाप छोड़ा गया है वह बलवान है। अतः शाप दूना भूखा होकर शाप देने वाले पर टूट पड़ता है। छायावाद को शाप देने वालों ने छायावाद का बड़ा मजाक उड़ाया है। उन्होंने समझा कि वह काव्य-वंश में कोई बड़ा ही विचित्र बालक पैदा हो गया है, जो पंखों वाला है, जो जन्म से ही आकाश में ताकता है, जो दूध और पानी पीने के स्थान पर आंसू पीता है, जो पैदा होते ही शून्य की, असीम की बहकी-बहकी बातें करता है और जो माँ की गोद छोड़कर पंखों पर उड़-उड़ कर अनन्त में विलास कर रहा है।

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