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जीवनी/आत्मकथा >> तुम्हारा परसाई

तुम्हारा परसाई

कान्ति कुमार जैन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :334
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14467
आईएसबीएन :9788181430984

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तुम्हारा परसाई

तुम्हारा परसाई

अनुक्रम

  • समय के सीगों को मोडञने के लिए जमानी से जबलपुर की यात्रा : पर सब विदाउट टिकट
  • जमना जबलपुर में और करना शुरू बुझे हुए कोयलों को दहकाना
  • बनना परसाई का लेखक-पहिली रचना
  • अप्रेंटिसी के दिन और सदर के हुक्म की तामील
  • गोल अकेले से नहीं बनता
  • सभी प्रकार के अलसेटों के खिलाफ
  • परसाई ने शेख अब्दुल के लिए क्‍या किया ?
  • एक फनी राइटर
  • पहिली मान्यता
  • वसुधा कैसे निकलीकैसे चली और बंद हुई कैसे ?
  • पीने पिलाने के दिन
  • परसाई जी को जानना हो तो जबलपुर को जानना चाहिए
  • मरण भोज नहीं होगा
  • व्यक्ति को प्रवृत्ति में ढालने का कौशल
  • कौन कितना धन्य हेकौन कितना जघन्य
  • यारमुझको इतना बेवकूफ मत समझो
  • हड्डी टूटने से हिम्मत नहीं टूटती
  • बड़ा कौन-सेठ गोविन्द दास या शेक्सपियर
  • हिन्दी शोध और परसाई
  • जितना यश लिखने से नहीं मिलाउससे ज्यादा पिटने से मिला
  • कौआनामा उर्फ मुक्तिबोध सृजन पीठ पर परसाई जी
  • परसाई रचनावली उर्फ संन्यासी का श्राद्ध
  • क्या हिन्दी के समर्थन का अर्थ उर्दू का विरोध है ?
  • एक बिना लेटर पैड वाला लेखक
  • परसाई ने कविता लिखना क्‍यों छोड़ा ?
  • परसाई में परस्पर भाव बहुत था
  • परसाई को झटका देना संभव नहीं था
  • शब्द काजू नहींसोने के सिक्के होते हैं
  • हम अच्छी चीजों का निर्यात करते हैं और गंदगी अपने उपयोग के लिए रखते हैं
  • बीसवीं शताब्दी के भारतीय समाज के सत्र न्यायधीश
  • जीवन-विवेक के सिकलीगर
  • व्यंग्य अपने मूल स्वरूप में क्रोधजन्य न होकर करुणाजन्य है
  • परसाई अपने अंतिम दिनों में क्या सोचते थे ?
  • व्यंग्य का वंश
  • तुम्हारा परसाई (परसाई के पत्र)

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