जीवनी/आत्मकथा >> तुम्हारा परसाई तुम्हारा परसाईकान्ति कुमार जैन
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तुम्हारा परसाई
तुम्हारा परसाई
अनुक्रम
- समय के सीगों को मोडञने के लिए जमानी से जबलपुर की यात्रा : पर सब विदाउट टिकट
- जमना जबलपुर में और करना शुरू बुझे हुए कोयलों को दहकाना
- बनना परसाई का लेखक-पहिली रचना
- अप्रेंटिसी के दिन और सदर के हुक्म की तामील
- गोल अकेले से नहीं बनता
- सभी प्रकार के अलसेटों के खिलाफ
- परसाई ने शेख अब्दुल के लिए क्या किया ?
- एक ‘फनी’ राइटर
- पहिली मान्यता
- ‘वसुधा’ कैसे निकली, कैसे चली और बंद हुई कैसे ?
- पीने पिलाने के दिन
- परसाई जी को जानना हो तो जबलपुर को जानना चाहिए
- मरण भोज नहीं होगा
- व्यक्ति को प्रवृत्ति में ढालने का कौशल
- कौन कितना धन्य हे, कौन कितना जघन्य
- यार, मुझको इतना बेवकूफ मत समझो
- हड्डी टूटने से हिम्मत नहीं टूटती
- बड़ा कौन-सेठ गोविन्द दास या शेक्सपियर
- हिन्दी शोध और परसाई
- ‘जितना यश लिखने से नहीं मिला, उससे ज्यादा पिटने से मिला
- कौआनामा उर्फ मुक्तिबोध सृजन पीठ पर परसाई जी
- परसाई रचनावली उर्फ संन्यासी का श्राद्ध
- क्या हिन्दी के समर्थन का अर्थ उर्दू का विरोध है ?
- एक बिना लेटर पैड वाला लेखक
- परसाई ने कविता लिखना क्यों छोड़ा ?
- परसाई में परस्पर भाव बहुत था
- परसाई को झटका देना संभव नहीं था
- ‘शब्द काजू नहीं, सोने के सिक्के होते हैं’
- ‘हम अच्छी चीजों का निर्यात करते हैं और गंदगी अपने उपयोग के लिए रखते हैं’
- बीसवीं शताब्दी के भारतीय समाज के सत्र न्यायधीश
- जीवन-विवेक के सिकलीगर
- व्यंग्य अपने मूल स्वरूप में क्रोधजन्य न होकर करुणाजन्य है
- परसाई अपने अंतिम दिनों में क्या सोचते थे ?
- व्यंग्य का वंश
- तुम्हारा परसाई (परसाई के पत्र)
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