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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।



शिथिलीकरण की कला



विगत सौ या उससे अधिक वर्षों के दौरान सम्पूर्ण विश्व में मनुष्य की जीवन शैली में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। सामाजिक प्रथाएँ एवं अन्य व्यवस्थाएँ अब पुराने जमाने जैसी नहीं रहीं। इससे मनुष्य की जीवनी शक्ति के सभी स्तरों पर एक बिखराव-सा उत्पन्न हो गया है और मनुष्य का मन उसके अस्तित्व के सभी क्षेत्रों में संतुलन एवं समन्वयता को खो चुका है। हम भौतिक जीवन के सुखों में इतने तल्लीन हैं कि हमारे साथ क्या हो रहा है, असजगतापूर्वक इसे ही भुला बैठे हैं।

पिछली एक या दो शताब्दियों से विभिन्न रोग नये आयामों, रूप-रंग एवं आकारों में उभरकर सामने आये हैं और उन्होंने विकराल रूप धारण कर लिया है। अब शायद यह सिलसिला पिछले कुछ दशकों से अपनी पराकाष्ठा पर ही पहुँच गया है। चिकित्सा विज्ञान ने पूर्ववर्ती प्लेग रोग पर कुछ हद तक नियंत्रण प्राप्त कर लिया था, परन्तु आज हमें उस तनाव से उत्पन्न हुई महामारी का सामना करना पड़ रहा है जो कि आधुनिक जीवन की अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक शैली को अपने अनुकूल न बना सकने के कारण उत्पन्न हो गई है।

मनोदैहिक बीमारियाँ, जैसे - मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अर्धकपालि (माइग्रेन), दमा, अल्सर तथा पाचन एवं चर्म सम्बन्धी व्याधियाँ शरीर एवं मन के तनावों के कारण ही उत्पन्न होती हैं। विकसित देशों में कैंसर एवं हृदय रोग से होने वाली अधिकांश मौतों के मूल में तनाव ही छुपा है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इन रोगों की रोकथाम के लिए कई प्रकार से प्रयत्न किये हैं, लेकिन वस्तुतः वह मनुष्य को समुचित स्वास्थ्य प्रदान करने में असमर्थ ही रहा है। इसका कारण यह है कि वास्तविक समस्या शरीर में नहीं है, वरन् उसका मूल कारण मनुष्य के बदलते आदर्श एवं उसके सोचने एवं अनुभव करने का तरीका है। जब शक्ति का अपव्यय होता है, जब आदर्शों में परिवर्तन होता है तो शरीर एवं मन में समन्वयता की आशा कैसे की जा सकती है?

आज विश्व की समस्या भूख, गरीबी, नशा एवं युद्ध का भय नहीं है, वरन् तनाव एवं उच्च रक्तचाप इत्यादि हैं। यदि आप तनाव से मुक्ति पा सकें तो आप अपने जीवन की समस्याओं को सुलझाने में समर्थ हो सकते हैं। अगर आप अपने तनावों में संतुलन बनाए रख सकें तो आप अपनी भावनाओं, वासनाओं तथा क्रोध पर नियंत्रण रख सकते हैं, आप हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, श्वेत रक्तता (ल्यूकीमिया) एवं हृत्शूल (ऐन्जाइना पैक्टोरिस) जैसे रोगों पर नियंत्रण प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं।

तनाव के प्रकार



आप चाहे बहुत ज्यादा सोचें या बिल्कुल नहीं; आप चाहे कोई शारीरिक कार्य करें या कोई कार्य ही न करें; आप बहुत ज्यादा सोयें या बिल्कुल नहीं; आप प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेटयुक्त गरिष्ठ भोजन करें या शाकाहारी, तनाव हर हालत में उत्पन्न होगा ही। ये तनाव मनुष्य के व्यक्तित्व की विभिन्न परतों में जमा होते रहते हैं। इनका संचय मनुष्य की मांसपेशीय, भावनात्मक एवं मानसिक प्रणालियों में होता रहता है।

योग में तनावजनित समस्या से निपटने का तरीका अत्यन्त व्यापक है। हम जानते हैं कि यदि मन में तनाव है तो पेट भी खराब होगा और यदि पेट खराब है तो पूरी परिसंचरण प्रणाली भी तनाव-ग्रस्त हो जायेगी। वास्तव में यह एक दुष्चक्र है। इसीलिए योग में तनाव को शिथिल करने पर अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है।

व्यक्ति के आंतरिक तनाव मनोवैज्ञानिक तनावों को जन्म देते हैं, जिनका प्रकटीकरण अप्रिय पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन की अव्यवस्था एवं उथल-पुथल तथा विभिन्न समुदायों एवं देशों के बीच आक्रमण एवं युद्ध-स्थिति के रूप में होता है। धर्म व्यक्ति को शान्ति प्रदान करने में सफल नहीं हुए हैं और कानून, पुलिस, सेना अथवा सरकार भी मनुष्यों के बीच समन्वयता स्थापित करने में असमर्थ ही रहे हैं। सभी योग-ग्रंथों में स्पष्ट निर्देशन है कि शान्ति मनुष्य के भीतर रहती है, बाहर नहीं। अतः एक शान्तिमय विश्व के सृजन के लिए हमें पहले अपने शरीर और मन को विश्रान्त एवं समन्वित करना सीखना होगा।

योग दर्शन एवं आधुनिक मनोविज्ञान ने तनाव के तीन मूलभूत कारण बतलाए हैं जो कि आधुनिक जीवन की सम्पूर्ण व्यथा के कारण हैं। योग निद्रा के अभ्यास से व्यक्ति इन तीनों प्रकार के तनावों से उत्तरोत्तर मुक्त हो सकता है।

मांसपेशीय तनाव - इस प्रकार के तनाव शरीर, तंत्रिका तंत्र एवं अंत:स्रावी असंतुलन से सम्बन्धित होते हैं। योग निद्रा द्वारा गहन शारीरिक शिथिलीकरण प्राप्त करके इन तनावों से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।

भावनात्मक तनाव - ये तनाव विभिन्न द्विविधताओं से सम्बन्धित होते हैं, जैसे, प्रेम-घृणा, लाभ-हानि, सफलता-असफलता, प्रसन्नता-अप्रसन्नता, इत्यादि। इनसे छुटकारा पाना अधिक कठिन होता है। इसका कारण यह है कि हम अपनी भावनाओं को स्वतंत्र एवं खुले रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पाते। प्रायः हम इन्हें पहचानने से ही इन्कार कर देते हैं और ये पुनः दमित हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप तनावों की जड़ें गहरी होती जाती हैं। इस प्रकार के तनाव साधारण निद्रा और विश्राम से दूर नहीं किये जा सकते हैं। इनके लिए तो योग निद्रा जैसी किसी शक्तिशाली विधि की आवश्यकता है जो मन के सम्पूर्ण भावनात्मक ढाँचे को शान्ति प्रदान कर सके।

मानसिक तनाव - मानसिक तनावों का कारण अत्यधिक मानसिक क्रियाशीलता है। वास्तव में हमारा मन दिवास्वप्नों, भ्रान्तियों एवं उतार-चढ़ाव का एक चक्र है। अपने सम्पूर्ण जीवन में चेतना द्वारा किये गये अनुभवों का एकत्रीकरण हमारे मानसिक शरीर में होता रहता है। जब समय-समय पर इनमें विस्फोट होता है तो ये व्यक्ति के शरीर, मन, व्यवहार और प्रतिक्रियाओं पर अपना प्रभाव डालते हैं। जब हम दु:खी, क्रुद्ध या उत्तेजित होते हैं तो इस असामान्य स्थिति को किसी सतही कारण का परिणाम मानते हैं। लेकिन मनुष्य के इस असामान्य व्यवहार का कारण मानसिक

सतहों पर संचित तनाव ही हैं। योग निद्रा शिथिलीकरण का एक ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा हम अवचेतन मन की गहराई तक पहुँचकर मानसिक तनावों को मुक्त व शिथिल करते तथा अपने जीवन में सामंजस्य लाते हैं।

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