योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
|
2 पाठकों को प्रिय 545 पाठक हैं |
योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
प्रत्याहार की प्रक्रिया
योगशास्त्र में योग निद्रा का अभ्यास 'राजयोग' से सम्बन्धित है। ईसा से भी कई सदियों पूर्व महर्षि पतंजलि ने 'योगसूत्र' नामक एक ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें 196 मूल श्लोक हैं, जो राजयोग की क्रियाओं का स्पष्ट संकेत देते हैं। पतंजलि ने 'राजयोग' के मार्ग को आठ चरणों में विभाजित किया है। ये आठ भाग योग के मूलभूत आधार स्वरूप हैं। योगी को कैसे रहना चाहिए, क्या व्यवहार करना चाहिए, आदि-आदि। ये आठ मार्ग साधक के मन को शान्त कर समाधि की अवस्था अथवा स्वत्व की पहचान कराने में पूर्णतः सक्षम हैं। योग की ये अवस्थाएँ इस प्रकार हैं -
राजयोग के चरण
1. यम (सामाजिक रीति-रिवाज)
2. नियम (व्यक्तिगत आचार-व्यवहार)
3. आसन
4. प्राणायाम (प्राण का नियमन, प्राण, ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का अनुभव)
5. प्रत्याहार (इन्द्रियों पर संयम)
6. धारणा (चित्त की एकाग्रता)
7. ध्यान
8. समाधि (अपने को परम तत्त्व में लीन करना)
प्रथम चार अवस्थाओं का सम्बन्ध बाह्य आचार से है, जिसमें साधक से एक नियमित विशेष प्रकार के अभ्यास की आशा की जाती है। किसी भी योगी व योगाभ्यासी के लिए इन चारों नियमों का पालन अपने दैनिक अभ्यास में करना आवश्यक है। इन सभी नियमों-उपनियमों का कुशलतापूर्वक पालन करने पर ही साधक चेतन मन को वश में करके अंतर्मन की अवस्था में प्रवेश करता है। यम-नियम द्वारा आहार-व्यवहार का संयम, धारणा-ध्यान द्वारा मन के तर्क-वितर्कों से मुक्ति ही साधक को समाधि की अवस्था तक पहुँचाने में सहायक बनती है। अभ्यास के अन्तिम चार चरणों में चेतन मन की स्थिति का ज्ञान है, जिसके लिए कठिन एवं नियमित अभ्यास की आवश्यकता है। ये चार चरण अवचेतन मन से सम्बन्धित हैं, जहाँ अनुभवों और अहंकार के विचार एकत्र होकर चेतन मन को भ्रमित करते रहते हैं। (इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए बिहार योग विद्यालय द्वारा प्रकाशित 'मुक्ति के चार सोपान' का अध्ययन करें)
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book