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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


भावनात्मक नियंत्रण का विकास


मन के कुछ भाग, जैसे, हाइपोथैलेमस, लिम्बक सिस्टम इत्यादि क्रोध, आक्रमण, भय आदि भावनात्मक संवेदनाओं को जल्दी ग्रहण करने वाले केन्द्र हैं। साधारणत: व्यक्ति प्यार, खुशी, सुरक्षा और आनन्द की भावनाओं को तो नियंत्रण में कर लेता है, किन्तु क्रोधादि भावनात्मक संवेदनाओं पर नियंत्रण करना कठिन होता है। फिर भी योग निद्रा के उच्च अभ्यास में अभ्यासी को गहन शिथिलीकरण एवं सम्पूर्ण प्रक्रिया के प्रति साक्षी-भाव बनाये रखते हुए इन भयदायी संवेदनाओं को स्वेच्छा से उत्पन्न करने का सुझाव दिया जाता है। __ यह अभ्यास मस्तिष्क के दोनों गोलार्डों के स्नायु परिपथों को एक साथ सक्रिय बनाता है, जो कि साधारण अवस्था में नहीं हो पाता है। इस प्रकार मस्तिष्क में एक नया स्नायु पथ बनता है, जो एक ही समय में दो तरह की भावनाओं पर नियंत्रण रखने में समर्थ होता है। जैसे, क्रोध और प्रेम, आनन्द और पीड़ा, सुख और दुःख आदि। यह घटना मस्तिष्क में इस तरह घटती है कि परस्पर विरोधी भावनाओं की प्रतिक्रियाओं के मौजूद रहते हुए भी मनुष्य केवल उन्हें देखता रहता है और शान्त रहता है।

अभ्यास की पुनरावृत्ति से यह नया स्नायु पथ स्थायी रूप ग्रहण कर लेता है जो मानव को अवचेतन की गहराई में जाकर उसे संसार के सुख-दुःख से त्राण पाने की क्षमता देता है। जो साधक आत्मिक ज्ञान की खोज में लगे हुए हैं उनके लिए योग निद्रा की यह स्थिति प्रारंभिक विजयं के रूप में आवश्यक है ताकि वे अपने द्विमुखी व्यक्तित्व से मुक्ति पाकर सत्य की प्राप्ति कर सकें। यह पथ केवल एक ही अनुभव को बढ़ाता रहता है और वह अनुभव है चिदानन्द। यह आनन्द सांसारिक सुख-दुःख, पीड़ा आदि से परे उसकी आत्मा में निवास करता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस अभ्यास का फल व्यक्तित्व को निखार कर संसार से अनासक्ति प्रदान करता है। इस प्रकार योग निद्रा भावनात्मक संवेदनशीलता की प्रतिक्रियाओं एवं उन्हें उभारने वाली स्वतंत्र क्रियाओं पर नियंत्रण रखना सिखाती है। यह क्रान्तिकारी प्रभाव व्यक्ति के जीवन को अति सजगता की स्थिति में लाकर भावनात्मक क्रियाओं के द्वारा उत्तेजना पर नियंत्रण रखना सिखलाता है। दिन-प्रतिदिन व्यक्ति अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ता चलता है, जो सत्य है, शिव है, सुन्दर है। जो सुख-दु:ख, द्वन्द्व आदि के परे है।

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