| नाटक-एकाँकी >> दरिंदे दरिंदेहमीदुल्ला
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आधुनिक ज़िन्दगी की भागदौड़ में आज का आम आदमी ज़िन्दा रहने की कोशिश में कुचली हुई उम्मीदों के साथ जिस तरह बूँद-बूँद पिघल रहा है उस संघर्ष-यात्रा का जीवन्त दस्तावेज़ है यह नाटक
    
    बूढ़ी : हम हमेस तुहार पास रहित।
    राहुल : नहीं। जब-जब ऐसा होता था, तुम मेरे पास नहीं होती थीं। और उसके
    बाद बहुत देर तक मुझे नींद नहीं आती थी।
    बूढ़ी : सबऊ सपनवा सच नाहीं होत। (मौन) तुहार ब्याह के बाद हमऊ एक सपनवा
    देख रही...एक नन्हा-सा नाती का गोद मा खिलाये का। पर आज ताई उरमिला की गोद
    नहीं भरी (मौन) आज डॉक्टर के पास गये रहे ऊए लेके, का कहिन ?
    राहुल : कोई खास बात नहीं।
    बूढ़ी : तुहार खातिर का कहिन ?
    राहुल : वही, जो उर्मिला के लिए।
    बूढ़ी : उरमिला की माँ तो कछु और ही कहत रही।
    राहुल : वह कोई डॉक्टर है, या उसने मुझे...
    बूढ़ी : ठीक अपन बाप जैइसे बात करते है। 
    राहुल : ग़लत है।
    बूढ़ी : चुप रहा कर। जादा बोला ना करो।
    राहुल : इसका मतलब यह हुआ कि...
    बूढ़ी : उरमिला बताई होई उनका। उसकी माँ कहत रही कि उसकी बिटिया मा कोई
    कमी नाहीं।
    राहुल : ममी, कौन बच्चे के झंझट में पड़े अभी से।
    बूढ़ी : फिर और कब तक यूँ ही ?  बहू कहाँ है ?
    राहुल :  आ रही है पीछे।
    बूढ़ी : मैं जाकर देखती हूँ। कहाँ रुक गयी।
    
        (बूढ़ी विंग्स की तरफ़ बढ़ती है। विंग्स
    के पास सिर का जूड़ा खोलती है। साड़ी का पल्लू ठीक कर उर्मिला की भूमिका
    में राहुल की तरफ़ आ जाती है।)
    
    उर्मिला : सुनो।
    
        (राहुल उसकी आँखों में झाँकता है)
    
    आज इस तरह घूरकर
    क्यों देख रहे मुझे ?
    राहुल : मैं तुम्हारी आँखों का रंग देख रहा हूँ।
    उर्मिला : शादी के पाँच साल बाद अचानक मेरी आँखों के रंग में कैसे
    दिलचस्पी हो गयी तुम्हें ? 
    राहुल : सुना है तुम्हारी आँखों का रंग बड़ा खूबसूरत है।
    उर्मिला : सुना है, किससे ?
    राहुल : यही वो अपना दोस्त है न, रवि !  वो तुम्हारी आँखों की
    बड़ी तारीफ करता है।
    उर्मिला : उसने कहाँ देख लिया मुझे ?  मैंने तो उसे कभी नहीं
    देखा।
    राहुल :  अपना जिगरी है। मैंने उसे यहाँ बुलाया है आज। शिकायत कर
    रहा था, भाभी से अभी तक परिचय नहीं कराया। बड़ा मजेदार दोस्त है। उससे
    मिलकर बड़ी खुशी होगी तुम्हें। वो आने ही वाला है अभी। लो, वो भी आ गया
    शायद। हाँ, वही तो है। (राहुल विंग्स में दर्शकों को दिखता हुआ खड़ा हो
    जाता है) आओ यार रवि।  
    मैं अभी तुम्हारी ही बातें कर रहा था। मम्मी पड़ोस
    में गयी हैं। डैडी बाहर हैं। तुम बैठो। उर्मिला से बातें करो। मैं
    तुम्हारे लिए कुछ लेकर आता हूँ। बस अभी आया।( राहुल रवि की भूमिका में
    उर्मिला के पास आता है। हावभाव और आवाज़ में बदलाहट।)
    रवि : (उर्मिला से) नमस्ते।
    उर्मिला :  नमस्ते, बैठिए।
    रवि :  आप भी तो आइये...आइये, आइये।
    
    (उर्मिला रवि के पास वाली कुर्सी पर बैठ
    जाती है।)
    
     बड़े खुले दिल का
    दोस्त है।
    उर्मिला : ......................................
    रवि : चुप क्यों हैं ?  आप भी तो कुछ बोलिए।
    उर्मिला : क्या बोलूँ ? 
    रवि :  यही, राहुल की आदतों के बारे में।
    उर्मिला :  अच्छी हैं। 
    
        (रवि उर्मिला को घूरकर देखता है।)
    
    रवि : मेरा भी यही खयाल है। बहुत-बहुत सुन्दर !
    उर्मिला : आप यहाँ बैठिये। मैं अभी आती हूँ।
    रवि : अरे तुम, कहाँ चली। राहुल ने ते कहा था...
    उर्मिला  : वह अभी आ जाएँगे।
    रवि :  नहीं। वह अभी नहीं आयेगा।
    उर्मिला :  आप से कहकर गये हैं ?
    रवि :   मैं जानता हूँ।...तुम्हारे अभी तक कोई सन्तान
    नहीं हुई।
    उर्मिला : यह हमारा निजी मामला है।
    रवि : मैं तो यह जानना चाहता था कि क्या तुम्हें यह महसूस नहीं होता कि
    तुम्हारी शादी एक गलत आदमी से हो गयी है ?
    उर्मिला : क्या कह रहे हैं, आप ?
    रवि : मुझे मालूम है, राहुल उनमें से है जो बच्चे की पैदाइश पर लोगों के
    घर गाने-बजाने पहुँच जाते हैं। और तुम्हें इसका दुःख भी है।
    
    उर्मिला : चुप रहिए। अपने दोस्त के बारे में ऐसी बातें करते शर्म नहीं आती
    आपको।
    रवि : (उर्मिला के करीब आकर) तुम तो नाराज हो गयी। तुम्हारी आँखें बिलकुल
    हिरन-जैसी हैं।
    उर्मिला : दूर रहिए। जानवर और इन्सान में बुनियादी अन्तर है।
    रवि :  (कितनी कोमल।) निरन्तर उर्मिला की तरफ़ बढ़ता है।
    (उर्मिला उससे बचने की कोशिश करती है।) हाथ फेरने से मेमने के बाल कितने
    मुलायम, कितने नाजुक और चिकने लगते हैं।
    उर्मिला :  भेड़िये की आँख कितनी तेज़ चमकती हैं।
    रवि :  तुमने मुझे पहचाना नहीं।
    उर्मिला :  आगे मत बढ़ो।
    रवि : मैं तो एक परम्परा का निर्वाह कर रहा हूँ।
    उर्मिला : खूँख़ार दरिन्दे।
    रवि : माँ कहेगा।
    उर्मिला : नहीं चाहिए।
    रवि : वंश चलेगा।
    उर्मिला : नहीं।
    रवि : मोक्ष मिलेगा।
    उर्मिला : दुष्ट !  पापी !।
    
     (दोनों मंच से बाहर चले जाते हैं। उर्मिला की तेज़ चीख। प्रकाश
    लुप्त। भयावह संगीत। क्षणिक अन्तराल के बाद मंच के बीचों-बीच गोलाकार
    प्रकाश। राहुल का प्रवेश, मानो किसी अदालत में बयान दे रहा हो। पार्श्व से
    ‘आर्डर, आर्डर, आर्डर’ की भारी
    आवाज़।) 
    			
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