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रत्न कंगन तथा अन्य कहानियाँ

निर्मल वर्मा

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14623
आईएसबीएन :9789350001592

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रत्न-कंगन तथा अन्य कहानियाँ

अलेक्सांद्र कुप्रीन की रत्न कंगन तथा अन्य कहानियाँ की शीर्षक-कथा रत्न-कंगन एकतरफ़ा प्रेम का मार्मिक आख्यान है, जिस पर 1965 में सोवियत संघ में एक फ़िल्म भी बनी थी। इस अभिशप्त कहानी के केंद्र में एक राजसी महिला से एकतरफ़ा प्रेम में पड़ गया एक साधारण क्लर्क है। जानी-पहचानी सामाजिक स्थिति, जिसमें क्लर्क हास्यास्पद है और राजसी परिवार के हर सदस्य को उसका उपहास उड़ाने का अधिकार है, देखते-देखते उदात्त प्रेम पर लंबे चिंतन के आख्यान में बदल जाती है।

अपनी अनेक कहानियों में कुप्रीन ने प्रेम के इस सामाजिक पक्ष - आर्थिक ऊँच-नीच - को बड़ी संवेदनशीलता से छुआ है और हालाँकि लगभग हमेशा ही उनके कथानक में समाज की, बलवान की जीत होती है, यह जीत हमेशा के लिए प्रश्नांकित होने से नहीं बचती।

टॉलस्टॉय और चेखव की ही परंपरा में कुप्रीन रूसी साहित्य के उस स्वर्ण-काल के लेखक हैं जिनके पास समाज के हर तबके के पात्र के लिए अचूक अंतर्दृष्टि थी। किसी देश के इतिहास में जो कुछ गिने-चुने लेखक अपने होने भर से काल और संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं, कुप्रीन वैसे ही एक महान रूसी लेखक हैं।

पाठकों के लिए यह तथ्य रोचक होगा कि 1954 में जब युवा लेखक निर्मल वर्मा ने इन कहानियों का अनुवाद किया था, तो उनका अपना देश भी स्वतंत्रता के बाद एक संक्रमण-काल के सम्मुख नियति की पहचान कर रहा था।

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