जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
नौकर काम-काज में लगे। बैलों को खोल दिया गया। वे अब खाने में लग गए। वन के
चूल्हों पर रोटियां सिकने लगीं। केशवराय ने दोनों पुत्रों को बुलवाया और फिर
तीनों ने स्नान किया। फिर केशवराय संध्या-वंदन करने लगे। दोनों लड़कों से भी
मंत्रोच्चारण करवाया और तब उन्हें विदा करके पत्नी के निकट गए। लड़की बैठी
थी। स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, “सुनती हो! ओरछा आ रहा है।"
पत्नी ने कौतूहल से उनकी ओर देखा।
बोली नहीं। ग्वालियर याद आ गया था। किस कारण वे चले आए थे!
क्योंकि कुल-परम्परा का गौरव साधने की अर्थशक्ति वहां बच नहीं रही थी।
केशवराय विद्वान थे।
ओरछे के शासक थे महाराज रामशाह। काल ने उन्हें जर्जर कर दिया था। वे इस
अवस्था में राज्यकार्य के भार को उठाने में असमर्थ हो गए थे। उन्होंने बहुत
कुछ देखा था। परमात्मा ने सब कुछ दिया, किन्तु पुत्र नहीं दिया। उन्होंने भी
लोभ को लगाम कसकर रोक दिया। इस समय वे केवल भजन-पूजन में मन लगाते थे। राजकाज
का समस्त भार उठाए थे इन्द्रजितसिंह, जिन्हें प्रायः इन्द्रजीतसिंह कहा जाता
था। वे एक महान योद्धा थे। काव्य और कलाओं के पारखी थे, प्रेमी थे। उन्हें
विद्वानों का आदर करने का बड़ा भारी व्यसन था। अब उनके यहां केशवराय को कुछ
सहायता प्राप्त करने की आशा थी।
जव वे भोजन कर चुके तब उन्होंने दोनों पुत्रों को पास बुलाया और कहा, “ओरछा आ
गया। आदमी सब कुछ जानता है, किन्तु सब कुछ दैव के हाथ होता है।"
"क्या कहते हैं?" पत्नी ने कहा, "अभी ये बच्चे हैं। क्या समझेंगे।"
"जानता हूं," केशवराय ने फिर कहा, “मुझे इन्हीं से कहना है। ये मेरे
उत्तराधिकारी हैं। हमारे कुल में कभी कोई मूर्ख उत्पन्न नहीं हुआ। मैं स्वयं
ज्योतिष जानता हूं और इन पुत्रों को भी सिखाता हूं। तुम नहीं समझोगी कि
बिहारी वंशभास्कर प्रमाणित होगा। लक्ष्मी और सरस्वती दोनों हाथ बांधकर इसके
सामने खड़ी होंगी।"
"बड़ा बेटा तनिक ईर्ष्या से देखता रहा।
"हां, हां यह भी पीछे नहीं रहेगा।" केशवराय ने परिस्थिति को संभालते हुए कहा।
बड़ा भी मुस्करा दिया।
केशवराय के मुख पर उदासी दिखाई दी। उन्होंने फिर कहा, “मनुष्य का भाग्य बड़ा
विचित्र होता है। देख रही हो न? शाहंशाह अकबर एक रेगिस्तान में पैदा हुआ था
और आज उसके प्रताप का सूर्य कहीं डूबता नहीं दीखता।"
नानिगराम ने आकर प्रणाम किया और कहा, “जंगल में एक सिद्ध महाराज ठहरे हैं।"
"कौन पंथी हैं?" केशवराय ने पूछा।
"नाथ जोगी हैं।"
केशवराय ने सुना और अनसुना कर दिया किन्तु पत्नी के लिए जैसे यह भेद-भेद नहीं
था। बोली, “कुछ सेवा करो नानिगराम।"
"कर आया हूं बहू जी। और जो हुकम होगा सो हो जाएगा। आगरे जा रहे हैं।"
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