सामाजिक विमर्श >> मसावात की जंग पसेमंजर: बिहार के पसमांदा मुसलमान मसावात की जंग पसेमंजर: बिहार के पसमांदा मुसलमानअली अनवर
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मसावात की जंग पसेमंजर: बिहार के पसमांदा मुसलमान
मसावात की जंग पसेमंजर : बिहार के पसमांदा मुसलमान
भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा अब भी कितनी अधूरी है, यह जानने के लिए इस शोध कृति को पढ़ना जरूरी है। आम तौर पर माना जाता है कि जाति व्यवस्था हिंदू समाज में ही है और मुसलमान इस सामाजिक बुराई से मुक्त हैं। मंडल आयोग ने इस मिथक को पहली बार तोड़ा-पिछड़ी जातियों की उसकी सूची में मुसलमान भी थे। पिछड़ी जातियों के इन मुसलमानों को तो आरक्षण मिल गया लेकिन एक और मिथक टूटने की प्रतीक्षा कर रहा था जिसके अनुसार दलित वर्ग सिर्फ हिंदू समाज का कलंक है। दरअसल हुआ यह है कि भारत में आकर इस्लाम ने भी अपना भारतीयकरण कर लिया, जिसके नतीजे में उसने हिंदू समाज की अनेक बुराइयाँ अपना लीं। अन्यथा यहाँ के मुस्लिम समाज में हलालखोर, लालनेगी, भटियारा, गोरकन, बक्खो, मीरशिकार, चिक, रंगरेज नट आदि दलित जातियाँ न होतीं। इनका दोहरा अभिशाप यह है कि हिंदू इन्हें मुसलमान मानते हैं और इनके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं; दूसरी तरफ मुसलमान इन्हें अपने सामाजिक सोपानक्रम में सबसे नीचे रखते हैं और इनके साथ दलितों जैसा सलूक करते हैं। भारतीय संविधान ने भी इनके साथ कम मजाक नहीं किया है। अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, पर इन जातियों की सूची में दलित मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बिहार प्रांतीय जमावत-उल-मोमिनीन के अब्दुल कयूम अंसारी को संबोधित 14 नवंबर, 1939 के अपने पत्र में स्वीकार किया था कि उच्च वर्ग के मुसलमानों ने सभी सुविधाओं पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है, अतः मोमिनों के विकास के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए, जिनमें सीटों का आरक्षण भी शामिल है। लेकिन आजादी के पाँच दशक बाद भी दलित मुसलमानों को न्याय नहीं मिल पाया है। वास्तविकता तो यह है कि उनके परंपरागत पेशे उजड़ जाने के कारण उनकी हालत और बदतर ही हुई है। इसी से उनकी राजनीति भी जन्म ले रही है : वे समझ गए थे कि न दलित संगठन उन्हें अपना सकेंगे न ऊँची जातियों के मुसलमान उन्हें पूरे धार्मिक और सामाजिक अधिकार दे सकते हैं। शोषित, दलित और वंचित वर्गों के इस उषा काल में अली अनवर का यह मूल्यवान अध्ययन भारत की राजनीतिक संरचना के बारे में नयी अंतर्दृष्टि देता है और जाति तथा वर्ग की विषमताओं से संघर्ष की रणनीति में कुछ जरूरी संशोधन प्रस्तावित करता है।
- राजकिशोर
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