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महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक

सम्राट अशोक

प्राणनाथ वानप्रस्थी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1492
आईएसबीएन :81-7483-033-2

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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...

सबने एक स्वर होकर कहा, ''महाराज! मौर्यवंश वालों की यह चाल है। इतना बड़ा मौर्य साम्राज्य और हमसे मित्रता गांठना चाहता है, सो भी इतनी बड़ी सेना लेकर! यह धोखा है, महाराज! वे हमें मिटाने आए हैं। जब तक हमारा एक भी आदमी जीवित है, जब तक हमारे शरीर में अन्तिम सांस है, शत्रु से लड़ेंगे और उसे अपनी जन्मभूमि में नहीं घुसने देंगे।''

कलिंगराज दरबार में खड़े हो गए और बाले, ''मेरे देश के सपूतो! एक बार और सोच लो। यह टक्कर आज के सबसे बड़े सम्राट् के साथ है। उनकी शक्ति की थाह पाना और उसे विजय करने की बात सोचना भी मृत्यु, तबाही और बरबादी को निमन्त्रण देना है। ऐसा मत समझो कि मुझे आप लोगों की वीरता पर भरोसा नहीं है। फिर भी समय देखकर विचार करना ही  होता है। मौर्य साम्राज्य की सारी शक्तियां हमें मिटाने के लिए पिल पड़ेंगी।''

इन शब्दों का कहना था कि सभी वीरों की आंखों से रक्त टपकने लगा और उन्होंने क्रोध में भरकर अपनी तलवारें निकाल लीं। महाराज की  आज्ञा पाकर सेनापति उठकर बोले, ''महाराज! आप सत्य कहते हैं। परन्तु, हमने उनका क्या बिगाड़ा है, जो आज मौर्य सम्राट् हमें जीने भी नहीं देता? हम भले ही मिट जाएंगे, परन्तु  किसी भी मूल्य पर अपनी स्वतन्त्रता नहीं बेचेंगे। हमें भी तो संसार में जीने का अधिकार है।''

कलिंगराज ने सबका रुख देखकर सम्राट् अशोक को लिख भेजा, ''इस देश का बच्चा-बच्चा अपनी जन्मभूमि के लिए मर मिटना जानता है। आपको हमारी बरबादी से क्या लेना, आपको तो केवल अपना राज्य बढ़ाने की ही चिन्ता है। अब आपकी हमारी मित्रता युद्धभूमि में होगी।''

अब क्या था, दोनों ओर की सेनाएं युद्धभूमि में उतर पड़ीं। एक ओर 'सम्राट् अशोक की जय', 'मौर्य साम्राज्य अमर रहे' और दूसरी ओर 'कलिंगराज की जय' और 'मातृभ्रमि अमर रहे' के नारों से आकाश गूंज उठा। कई दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा। रक्त की नदियां बह निकलीं। युद्धभूमि में अनगिनत लाशें जहां-तहां सड़ने लगीं। वायु में इतनी दुर्गन्ध फैल गई कि सैनिकों को सांस लेना कठिन हो गया। एशिया के सबसे बड़े सम्राट् अशोक ने बहुत बड़ा मूल्य देकर कलिंग देश पर विजय प्राप्त कर ली।

शिलालेख 13 के अनुसार युद्ध में कलिंग के डेढ़ लाख सैनिक पकड़े गए और अनेक जख्मी हुए।

कम-से-कम इस भयंकर युद्ध में दोनों ओर के 9-10 लाख सैनिक मारे गए या जख्मी हुए। असंख्य के हाथ टूट गए। असंख्य की टांगें टूट गईं। असंख्य की आंखें जाती रहीं। असंख्य लोग जीवन-भर के लिए बेकार हो गए। लाखों देवियां विधवा हो गईं। लाखों अनाथ बच्चे स्थान-स्थान पर रोने लगे। यह विचार आते ही युद्धभूमि में खड़ा अशोक बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोने लगा। मन्त्रियों ने बहुतेरा समझाया, पर उसे शान्ति न हुई।

इस युद्ध ने सम्राट् अशोक का जीवन ही बदल डाला। उसने निश्चय किया कि अब मैं किसी भी देश पर सेनाओं द्वारा आक्रमण नहीं करूंगा। परन्तु प्रेम का संदेश लेकर सारे संसार को एक माला में पिरोऊंगा। वह शिलालेख 13 में लिखता है, 'जितने मनुष्य कलिंग-युद्ध में मारे गए, अब यदि उसका हजारवां भाग भी मारा जाए तो मुझे महान् दुःख होगा।'

यह सम्राट् अशोक का सबसे पहला और अन्तिम युद्ध हुआ।

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    अनुक्रम

  1. जन्म और बचपन
  2. तक्षशिला का विद्रोह
  3. अशोक सम्राट् बने
  4. कलिंग विजय
  5. धर्म प्रचार
  6. सेवा और परोपकार
  7. अशोक चक्र

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