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श्रंगार-विलास >> रतिकल्लोलिनी

रतिकल्लोलिनी

डॉ. दलवीर सिंह चौहान

प्रकाशक : चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15246
आईएसबीएन :9788170801648

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संस्कृत में रचित कामकला के अत्यंत प्राचीन ग्रंथ रतिकल्लोलिनी का हिन्दी अनुवाद

पुरुषार्थ चतुष्टय और काम यह काम जीवन का एक महत्त्वपूर्ण सत्य है, इसके विना जीवन का अस्तित्व ही नहीं। इसीलिये इस काम को पुरुषार्थ चतुष्टय में सम्मिलित किया गया है, सम्मिलित ही नहीं, पुरुषार्थ के मुख्य लक्ष्य मोक्ष के साधनों में रखा गया है तथा धर्म और अर्थ के साथ साथ इसको भी समान स्थान प्रदान किया गया है। जैसा कि कहा जाता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की, तो उसी के साथ इस संसार की व्यवस्था चलाने के लिये एक लक्ष श्लोक वाले एक ग्रन्थ की रचना की, बाद में उसी में धर्म को लेकर मनु ने धर्मशास्त्र का व्याख्यान किया, बृहस्पति ने अर्थशास्त्र का व्याख्यान किया और फिर भगवान् शंकर के सेवक नन्दिकेश्वर ने काम को लेकर कामशास्त्र की रचना कर डाली। इससे सिद्व होता है कि धर्म और अर्थ के साथ कामशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता को आदिकाल से महत्त्व दिया जाता रहा है। क्यों नहीं दिया जाता ? यह पुरुषार्थ के तीनों साधनों में सबसे महत्त्वपूर्ण है । इसके विषय में सबसे अच्छा उदाहरण महाभारत प्रस्तुत करता है । महाभारत में काम ही मोक्ष का कारण तथा तीनों वर्गों का सार है, इसे बहुत ही मार्मिक ढंग से समझाया गया है । इस विषय में जब युधिष्ठिर ने प्रश्न किया कि मोक्ष के साधन धर्म अर्थ और काम में कौंन सर्वाधिक श्रेष्ठ है ? इस पर विदुर जी ने कहा कि धर्म से ही ऋषियों ने संसार समुद्र को पार किया है, धर्म पर ही सम्पूर्ण लोक टिके हुए हैं, धर्म से देवताओं की उन्नति हुई है और धर्म से अर्थ की भी स्थिति है । इसलिये राजन् ! धर्म ही श्रेष्ठ गुण है, अर्थ को मध्यम बताया जाता है और काम सब की अपेक्षा लघु है, ऐसा मनीषी पुरुष कहते हैं ।

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