आचार्य श्रीराम किंकर जी >> मानस मुक्तावली भाग-2 मानस मुक्तावली भाग-2श्रीरामकिंकर जी महाराज
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प्रस्तुत ग्रंथ में रामचरितमानस की 100 चौपाइयों के विशद विवेचन का द्वितीय भाग...
मानस-मुक्तावली भाग-2 में जिन पंक्तियों के आधार पर व्याख्या प्रस्तुत की गई है, वे निम्नलिखित हैं
1. श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ।।
2. रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा।।
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराजु राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।
3. सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली।।
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहिं चाँदिनि राति न भावा।।
सारद बोलि विनय सुर करहीं। बारहिं बार पार्दै लै परहीं।।
बिपति हमारि बिलोकि बड़ि, मातु करिअ सोइ आज ।
राम जाहिं बन राज तजि, होइ सकल सुर काज।।
4. नामु मंथरा मन्दगति, चेरी कैकइ केरि।
अजस पेटारी ताहि करि, गई गिरा मति फेरि ।।
दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा।।
पूछेसि लोगन्ह काहे उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू।।
करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती ।।
देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गर्दै तकइ लेउँ केहि भाँति ।।
5. बाल सखा सुनि हिय हरषाहीं। मिलि दस पाँच राम पहिंजाहीं ।।
प्रभु आदरहिं प्रेम पहिचानी। पूछहिं कुसल खेम मृदु बानी।।
फिरहिं भवन प्रिय आयसु पाई। करत परसपर राम बड़ाई।।
को रघुबीर सरिस संसारा। सील सनेह निबाहनिहारा।।
जेहि जेहि जोनि करम बस भ्रमहीं। तहँ-तहँ ईसु देउ यह हमहीं।।
सेवक हम स्वामी सियनाहू। होउ नाथ एहि ओर निबाहू।।
6. कबने अवसर का भयउ, गयउ नारि बिस्वास।
जोग सिद्धि फल समय जिमि, जतिहिं अबिद्या नास ।।
7. निरखि बदन कहि भूप रजाई। रघुकुल दीपहि चले लेवाई।।
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