जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...
वकालत करने में साहब के साथ झगड़ा बाधक बनताथा। पोरबन्दर में एडमिनिस्ट्रेशन नाबालिगी शासन था। वहाँ राणा साहब के लिए सत्ता प्राप्त करने का प्रयत्न करना था। मेंर लोगों से लगान उचित से अधिकवसूल किया था। इसके सिलसिले में भी मुझे वहीं एडमिनिस्ट्रेटर से मिलना था। मैंने देखा कि एडमिनिस्ट्रेटर यद्यपि हिन्दुस्तानी हैं, तथापि उनकारोब-दाब तो साहब से भी अधिक हैं। वे होशियार थे, पर उनकी होशियारी का लाभ जनता को अधिक मिला हो, यह मैं देख न सका। राणा साहब को थोड़ी सत्ता मिली।कहना होगा कि मेरे लोगों को तो कुछ भी न मिला। उनके मामले की पूरी जाँच हो, ऐसा भी मैंने अनुभव नहीं किया।
इसलिए यहाँ भी मैं थोड़ा निराश ही हुआ। मैंने अनुभव किया की न्याय नहीं मिला। न्याय पाने के लिएमेरे पास कोई साधन न था। बहुत करे तो बड़े साहब के सामने अपील की जा सकती हैं। वे राय देंगे, 'हम इस मामले में दखल नहीं दे सकते।' ऐसे फैसलों केपीछे कोई कानून-कायदा हो, तब तो आशा भी की जा सके। पर यहाँ तो साहब की मर्जी ही कानून हैं।
मैं अकुलाया।
इसी बीच भाई के पास पोरबन्दर की एक मेंनन फर्म का संदेशा आया : 'दक्षिण अफ्रीका में हमाराव्यापार हैं। हमारी फर्म बड़ी हैं। वहाँ हमारा एक बड़ा मुकदमा चल रहा हैं। चालीस हजार पौड़ का दावा हैं। मामला बहुत लम्बे समय से चल रहा हैं। हमारेपास अच्छे-से-अच्छे वकील-बारिस्टर है। अगर आप अपने भाई को भेजें, तो वे हमारी मदद करें और उन्हें भी कुछ मदद मिल जाये। वे हमारा मामला हमारे वकीलको अच्छी तरह समझा सकेंगे। इसके सिवा, वे नया देश देखेंगे और कई लोगों से उनकी जान-पहचान होगी।'
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