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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

ईसाइयों से संपर्क


दूसरेदिन एक बजे मैं मि. बेकर के प्रार्थना समाज में गया। वहाँ मिस हेरिस, मिस गेब, मि. कोट्स आदि से परिचय हुआ। सबने घुटने के बल बैटकर प्रार्थना की।मैंने भी उनका अनुसरण किया। प्रार्थना में जिसकी जो इच्छा होती, सो ईश्वर से माँगता। दिन शान्ति से बीते, ईश्वर हमारे हृदय के द्वार खोले, इत्यादिबाते तो होती ही थी। मेरे लिए भी प्रार्थना की गई, 'हे, प्रभु, हमारे बीच जो नये भाई आये हैं उन्हें तू मार्ग दिखा। जो शान्ति तूने हमें दी हैं, वहउन्हें भी दे। जिस ईसा ने हमे मुक्त किया हैं, वह उन्हें भी मुक्त करे। यह सब हम ईसा के नाम पर माँगते हैं।' इस प्रार्थना में भजन कीर्तन नहीं था।वे लोग ईश्वर से कोई भी एक चीज माँगते और बिखर जाते। यह समय सबके भोजन को होता था, इसलिए प्रार्थना के बाद सब अपने-अपने भोजन के लिए चले जाते थे।प्रार्थना में पाँच मिनट से अधिक नहीं लगते थे।

मिस हेरिस और मिस गेब दोनो पौढ़ अवस्था की कुमारिकाये थी। मि. कोट्स क्वेकर थे। ये दोनोकुमारिकाये साथ रहती थी। उन्होंने मुझे रविवार को चार बजे की चाय के लिए अपने घर आने का निमंत्रण दिया। मि. कोट्स जब मिलते तो मुझे हर रविवार कोमुझे हफ्ते भर की अपनी धार्मिक डायरी सुनाती पड़ती। कौन कौन सी पुस्तकें मैंने पढ़ी, मेरे मन पर उनका क्या प्रभाव पड़ा, इसकी चर्चा होती। वे दोनोबहने अपने मीठे अनुभव सुनाती औऱ अपने को प्राप्त हुई परम शान्ति की बाते करती।

मि. कोट्स एक साफ दिल वाले चुस्त नौजवान थे। उनके साथ मेरागाढ़ संबंध हो गया था। हम बहुत बार एकसाथ घूमने भी जाया करते थे। वे मुझेदूसरे ईसाईयो के घर भी ले जाते थे।

मि. कोट्स ने मुझे पुस्तकों से लाद दिया। जैसे जैसे वे मुझे पहचानते जाते, वैसे वैसे उन्हें अच्छीलगनेवाली पुस्तके वे मुझे पढने को देते रहते। मैंने भी केवल श्रद्धावश ही उन पुस्तको को पढ़ना स्वीकार किया। इन पुस्तकों की हम आपस में चर्चा भीकिया करते थे।

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