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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


सभा केपरिणाम से मुझे संतोष हुआ। निश्चय हुआ कि ऐसी सभा हर महीने या हर हफ्ते की जाय। यह सभा न्यूनाधिक नियमित रुप से होती थी और उसमें विचारों काआदान-प्रदान होता रहता था। नतीजा यह हुआ कि प्रिटोरिया में शायद ही कोई ऐसा हिन्दुस्तानी रहा होगा, जिसे मैं पहचाने न लगा होऊँ अथवा जिसकी स्थितिसे मैं परिचित न हो गया होऊँ।

हिन्दुस्तानियो की स्थिति का ऐसा ज्ञान प्राप्त करने का परिणाम यह आया कि मुझे प्रिटोरिया में रहने वालेब्रिटिश एजेंड से परिचय करने की इच्छा हुई। मैं मि. जेकोब्स डि-वेट से मिला। उनकी सहानुभूति हिन्दुस्तानियो के साथ थी। उनका प्रभाव कम था स परउन्होंने यथा सम्भव मदद करने और मिलना हो तब आकर मिल जाने के लिए कहा। रेलवे के अधिकारियों से मैंने पत्र-व्यवहार शुरू किया और बतलाया कि उन्हीके कायदो के अनुसार हिन्दुस्तानियो को ऊँचे दर्जे में यात्रा करने से रोका नहीं जा सकता। इसके परिणाम-स्वरुप यह पत्र मिला कि अच्छे कपड़े पहने हुएहिन्दुस्तानियो को ऊँचे दर्जे के टिकट दिये जायेंगे। इससे पूरी सुविधा नहीं मिली, क्योंकि किसने अच्छे कपड़े पहने हैं, इसका निर्णय तो स्टेशनमास्टर को ही करना था न?

ब्रिटिश एजेंड ने हिन्दुस्तानियो के बारे में हुए पत्र-व्यवहार संबंधी कई कागज पढ़ने को दिये। तैयब सेठ ने भीदिये थी। उनसे मुझे पता चला ऑरेंज फ्री स्टेट से हिन्दुस्तानियो को किस निर्दयता के साथ निकाल बाहर किया गया था। सारांश यह कि ट्रान्सवाल औरऑरेंज फ्री स्टेट के हिन्दुस्तानियो की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का गहरा अध्ययन मैं प्रिटोरिया में कर सका। इस अध्ययन का आगे चल करमेरे लिए पूरा उपयोग होने वाला हैं, इसकी मुझे जरा भी कल्पना नहीं थी। मुझे तो एक साल के अन्त में अथवा मुकदमा पहले समाप्त हो जाये तो उससे पहलेही स्वदेश लौट जाना था।

पर ईश्वर ने कुछ और ही सोच रखा था।

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