जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...
नेटाल में बस गया
सन्1893 में सेठ हाजी मुहम्मद हाजी दादा नेटान के हिन्दुस्तानी समाज के अग्रगण्य नेता माने जाते थे। साम्पत्तिक स्थिति में सेठ अब्दुल्ला हाजीआदम मुख्य थे, पर वे और दूसरे लोद भी सार्वजनिक कामों में सेठ हाजी मुहम्मद को ही पहला स्थान देते थे। अतएव उनके सभापतित्व में अब्दुल्ला सेठके घर एक सभा हुई। उसमें फ्रेंजाइज़ बिल का विरोध करने का निश्चय किया गया। स्वयंसेवकों के नाम लिखे गये। इस सभा में नेटाल में पैदा हुएहिन्दुस्तानियों को अर्थात् ईसाई नौजवानों को इकट्ठा किया गया था। मि. पॉल डरबन की अदालत में दुभाषिये थे। मि. सुभान गॉडफ्रे मिशन के स्कूल केहेडमास्टर थे। वे भी सभा में उपस्थित रहे थे और उनके प्रभाव से उस समाज के नौजवान अच्छी संख्या में आये थे। ये सब स्वयंसेवक बन गये। व्यापारी तोअधिकतर थे ही। उनमे से जानने योग्य नाम हैं, सेठ दाऊद मुहम्मद, मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन, सेठ आदमजी मियांखान, ए. कोलन्दावेल्लू पिल्ले, सी.लच्छीराम, रंगस्वामी पड़ियाची, आमद जीवा आदि। पारसी रुस्तमजी तो थे ही। कारकून-समाज में से पारसी माणेकजी, जोशी, नरसीराम वगैरा दादा अब्दुल्लाइत्यादि बड़ी फर्मों के नौकर थे। इन सबको सार्वजनिक काम में सम्मिलित होने का आश्चर्य हुआ। इस प्रकार सार्वजनिक काम के लिए न्योते जाने और उसमें हाथबटाने का उनका यह पहला अनुभव था। उपस्थित संकट के सामने नीच-ऊँच, छोटे-बडे, मालिक-नौकर, हिन्दू-मूसलमान, पारसी, ईसाई, गुजराती, मद्रासी,सिन्धी आदि भेद समाप्त हो चुके थे। सब भारत की सन्तान और सेवक थे।
बिल का दूसरा बाचन हो चुका था। उस समय धारासभा में कियें गये भाषणों में यहटीका थी कि इतने कठोर कानून का भी हिन्दुस्तानियों की ओर से कोई विरोध नहीं हो रहा हैं, यह हिन्दुस्तानी समाज की लापरवाही का और मताधिकार काउपयोग करने की उनकी अयोग्यता का प्रमाण है।
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