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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


मित्र देखतेरहे। उन्होंने पुस्तक बन्द कर दी। 'बस, अब मैं बहस नहीं करुगा,' यह कहकर वे चुप हो गया। मैं खुश हुआ। इसके हाद उन्होंने बहस करना छोड़ दिया।

पर मेरे बारे में उनकी चिन्ता दूर न हुई। वे बीडी पीते थे, शराब पीते थे।लेकिन मुझसे कभी नहीं कहा कि इनमें से एक का भी मैं सेवन करुँ। उलटे, वे मुझे मना ही करते रहे। उन्हे चिन्ता यह थी कि माँसाहार के अभाव में मैंकमजोर हो जाऊँगा। और इंग्लैंड में निश्तन्ततापूर्वक रह न सकूँगा।

इस तरह एक महीने तक मैंने नौसिखुए के रुप में उम्मीदवारी की। मित्र का घररिचमन्ड में था, इसलिए मैं हफ्ते में एक या दो बार ही लंदन जा पाता था। डॉक्टर मेंहता और भाई दलपतराम शुक्ल ने सोचा कि अब मुझे किसी कुटुम्ब मेंरहना चाहिये। भाई शुक्ल ने केन्सिग्टन में एक एंग्लोइण्डिन का घर खोज निकाला। घर की मालकिन एक विधवा थी। उससे मैंने माँस-त्याग की बात कही।बुढिया ने मेरी सार-संभाल की जिम्मेदारी ली। मैं वहाँ रहने लगा।

वहाँ भी मुझे रोज भूखा रहना पड़ता था। मैंने घर से मिठाई वगैरा खाने की चीजेमंगाई थी, पर वे अभी आयी नहीं थी। सब कुछ फीका लगता था। बुढ़िया हमेशा पूछती, पर वह करे क्या? तिस पर मैं अभी तक शरमाता था। बुढ़िया के दोलड़कियाँ थी। वे आग्रह करके थोड़ी अधिक रोटी देती। पर वह बेचारी क्या जाने कि उनकी समूची रोटी खाने पर ही मेरी पेट भर सकता था?

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