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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

लज्जाशीलता मेरी ढाल


अन्नाहारी मण्डल की कार्यकारिणी में मुझे चुन तो लिया गया और उसमें मैं हर बार हाजिरभी रहता था, पर बोलने के लिए जीभ खुलती ही न थी। डॉ. औल्डफील्ड मुझसे कहते, 'मेरे साथ तो तुम काफी बाक कर लेते हो, पर समिति की बैठक में कभीजीभ ही नहीं खोलते हो। तुम्हे तो नर-मक्खी की उपमा दी जानी चाहिये।' मैं इस विनोद को समझ गया। मक्खियाँ निरन्तर उद्यमी रहती हो, पर नर-मक्खियाँबराबर खाती-पीती रहती हैं और काम बिल्कुल नहीं करती। यह बड़ी अजीब बात थी कि जब दूसरे सब समिति में अपनी-अपनी सम्मति प्रकट करते, तब मैं गूंगा बनकरही बैठा रहता था। मुझे बोलने की इच्छा न होती हो सो बात नहीं, पर बोलता क्या? मुझे सब सदस्य अपने से अधिक जानकार मालूम होते थे। फिर किसी विषयमें बोलने की जरुरत होती और मैं कुछ कहने की हिम्मत करने जाता, इतने में दूसरा विषय छिड़ जाता।

यह चीज बहुत समय तक चली। इस बीच समिति में एक गंभीर विषय उपस्थित हुआ। उसमें भाग न लेना मुझे अन्याय होने देने जैसालगा। गूंगे की तरह मत देकर शान्त रहने में नामर्दगी मालूम हुई। 'टेम्स आयर्न वर्कस' के मालिक हिल्स मण्डल के सभापति थे। कहा जा सकता हैं किमण्डल उनके पैसे से चल रहा था। समिति के कई सदस्य तो उनके आसरे निभ रहे था। समिति में डॉ. एलिन्सन भी थे। उन दिनों सन्तानोत्पत्ति पर कृमित्रउपायो से अंकुश रखने का आन्दोलन चल रहा था। डॉ. एलिन्सन उन उपायो के समर्थक थे और मजदूरो में उनका प्रचार करते थे। मि. हिल्स को ये उपायनीति-नाशक प्रतीत हुए। उनके विचार में अन्नाहारी मण्डल केवल आहार के ही सुधार के लिए नहीं था, बल्कि वह एक नीति-वर्धक मण्डल भी था। इसलिए उनकीराय थी कि डॉ. एलिन्सन के समान धातक विचार रखने वाले लोग उस मण्डल में नहीं रहने चाहिये। इसलिए डॉ. एलिन्सन को समिति से हटाने का एक प्रस्तावआया। मैं इस चर्चा में दिलचस्पी रखता था। डॉ. एलिन्सन के कृमित्र उपायों-सम्बन्धी विचार मुझे भयंकर मालूम हुए थे, उनके खिलाफ मि. हिल्स केविरोध को मैं शुद्ध नीति मानता था। मेरे मन में उनके प्रति बड़ा आदर था। उनकी उदारता के प्रति भी आदर भाव था। पर अन्नाहार-संवर्धक मण्डल में सेशुद्ध नीति के नियमों को ने मानने वाले का उसकी अश्रद्धा के कारण बहिस्कार किया जाये, इसमें मुझे साफ अन्याय दिखायी दिया। मेरा ख्याल था किअन्नाहारी मण्डल के स्त्री-पुरुष सम्बन्ध विषयक मि. हिल्स के विचार उनके अपने विचार थे। मण्डल के सिद्धान्त के साथ उनका कोई सम्बन्ध न था। मण्डलका उद्देश्य केवल अन्नाहार का प्रचार करना था। दूसरी नीति का नहीं। इसलिए मेरी राय लह थी कि दूसरी अनेक नीतियों का अनादर करनेवाले के लिए भीअन्नाहार मण्डल में स्थान हो सकता हैं।

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