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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

असत्यरूपी विष


चालिस साल पहने विलायत जाने वाले हिन्दुस्तानी विद्यार्थी आज की तुलना में कमथे। स्वयं विवाहित होने पर भी अपने को कुँआरा बताने का उनमें रिवाज-सा पड़ गया था। उस देश में स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले कोई विद्यार्थी विवाहितनहीं होते। विवाहित के लिए विद्यार्थी जीवन नहीं होता। हमारे यहाँ तो प्राचीन काल में विद्यार्थी ब्रह्मचारी ही कहलाता था। बाल-विवाह की प्रथातो इस जमाने में ही पड़ी हैं। कह सकते हैं कि विलायत में बाल-विवाह जैसी कोई हैं ही नहीं। इसलिए भारत के युवकों को यह स्वीकार करते हुए शरम मालूमहोती हैं कि वे विवाहित हैं। विवाह की बात छिपाने का दूसरा एक कारण यह हैं कि अगर विवाह प्रकट हो जाये, तो जिस कुटुम्ब में रहते हैं उसकी जवानलड़कियों के साथ घूमने-फिरने और हँसी-मजाक करने का मौका नहीं मिलता। यह हँसी-मजाक अधिकतर निर्दोष होता हैं। माता-पिता इस तरह की मित्रता पसन्द भीकरते हैं। वहाँ युवक और युवतियों के बीच ऐसे सहवास की आवश्यकता भी मानी जाती हैं, क्योंकि वहाँ तो प्रत्येक युवक को अपनी सहधर्मचारिणी स्वयं खोजलेनी होती हैं। अतएव विलायत में जो सम्बन्ध स्वाभाविक माना जाता हैं, उसे हिन्दुस्तान का नवयुवक विलायत पहुँचते ही जोडना शुरू कर दे तो परिणामभयंकर ही होगा। कई बार ऐसे परिणाम प्रकट भी हुए हैं। फिर भी हमारे नवयुवक इस मोहिनी माया में फँस पड़े थे। हमारे नवयुवको ने उस योहब्वत के लिएअसत्याचरण पसन्द किया, जो अंग्रेजो की दृष्टि से कितनी ही निर्दोष होते हुए भी हमारे लिए त्याज्य हैं। इस फंदे में मैं भी फँस गया। पाँच-छह सालसे विवाहित और एक लड़के का बाप होते हुए भी मैंने अपने आपको कुँआरा बताने में संकोच नहीं किया ! पर इसका स्वाद मैंने थोड़ा ही चखा। मेरे शरमीलेस्वभाव ने, मेरे मौन ने मुझे बहुत कुछ बचा लिया। जब मैं बोल ही न पाता था, तो कौन लड़की ठाली बैठी थी जो मुझसे बात करती? मेरे साथ घूमने के लिए भीशायद ही कोई लड़की निकलती।

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