लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

160 पाठक हैं

my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

निर्बल के बल राम


धर्मशास्त्र का और दुनिया के धर्मो का कुछ भान तो मुझे हुआ, पर उतना ज्ञान मनुष्य कोबचाने के लिए काफी नहीं होता। संकट के समय जो चीज मनुष्य को बचाती हैं, उसका उसे उस समय न तो भान होता हैं, न ज्ञान। जब नास्तिक बचता हैं तो वहकहता हैं कि मैं संयोग से बच गया। ऐसे समय आस्तिक कहेगा कि मुझे ईश्वर ने बचाया। परिणाम के बाद वह यह अनुमान कर लेता हैं कि धर्मों के अभ्यास सेसंयम से ईश्वर उसके हृदय में प्रकट होता हैं। उसे ऐसा अनुमान करने का अधिकार हैं। पर बचते समय वह नहीं जानता कि उसे उसका संयम बचाता हैं या कौनबचाता हैं। जो अपनी संयम शक्ति का अभिमान रखता हैं, उसके संयम को धूल मिलते किसने नहीं जाना हैं? ऐसे समय शास्त्र ज्ञान तो छूछे जैसा प्रतितहोता हैं।

बौद्धिक धर्मज्ञान के इस मिथ्यापन का अनुभव मुझे विलायत में हुआ। पहले भी मैं ऐसे संकटों में से बच गया था, पर उनकापृथक्करण नहीं किया जा सकता। कहना होगा कि उस समय मेरी उमर बहुत छोटी थी।

पर अब तो मेरी उमर 20 साल की थी। मैं गृहस्थाश्रम का ठीक-ठीक अनुभव लेचुका था।

बहुत करके मेरे विलायत निवास के आखिरी साल में, यानि 1890 के साल में पोर्टस्मथमें अन्नाहारियो का एक सम्मेलन हुआ था।ष उसमं  मुझे और एक हिन्दुस्तानी मित्र को निमंत्रित किया गया था। हम दोनो वहाँ पहुँचे। हमेंएक महिला के घर ठहराया गया था। पोर्टस्मथ खलासियो का बन्दरगाह कहलाता हैं। वहाँ बहुतेरे घर दुराचारिणी स्त्रियों के होते हैं। वे स्त्रियाँ वेश्यानहीं होती, न निर्दोष ही होती हैं। ऐसे ही एक घर में हम लोग टिके थे। इसका यह मतलब नहीं कि स्वागत समिति ने जान-बूझकर ऐसे घर ठीक किये थे। परपोर्टस्मथ जैसे बन्दरगाह में जब यात्रियों को ठहराने के लिए डेरों की तलाश होती है, तो यह कहना मुश्किल ही हो जाता हैं कि कौन से घर अच्छे है और कौनसे बुरे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book