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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

नारायण हेमचंद्र


इन्ही दिनों स्व. नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे। लेखक के रुप में मैंने उनकानाम सुन रखा था। मैं उनसे नेशनल इंडियन एसोसियेशन की मिस मैंनिंग के घर मिला। मिस मैंनिंग जानती कि मैं सब के साथ हिलमिल नहीं पाता। जब मैं उनकेघर जाता, तो मुँह बन्द करके बैठा रहती। कोई बुलवाता तभी बोलता।

उन्होंने नारायण हेमचन्द्र से मेरी पहचान करायी। नारायण हेमचन्द्र अंग्रेजी नहींजानते थे। उनकी पोशाक अजीब थी। बेडौल पतलून पहले हुए थे। ऊपर सिकुड़नों वाला, गले पर मैंला, बादामी रंग का कोट था। नेकटाई या कॉलर नहीं थे। कोटपारसी तर्ज का, पर बेढंगा था। सिर पर ऊन की गुंथी हुई झल्लेदार टोपी थी। उन्होंने लंबी दाढ़ी बढ़ा रखी थी।

कद इकहरा और ठिंगना कहा जा सकता था। मुँह पर चेचक के दाग थे। चेहरा गोल। नाक न नुकीली न चपटी। दाढीपर उनका हाथ फिरता रहता। सारे सजे धजे लोगों के बीच नारायण हेमचन्द्र विचित्र लगते थे और सबसे अलग पड़ जाते थे।

'मैंने आपका नाम बहुत सुना हैं। कुछ लेख भी पढ़े हैं। क्या आप मेरे घरपधारेंगे?'

नारायण हेमचन्द्र की आवाज कुछ मोटी थी। उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया,'आप कहाँ रहते हैं?'

'स्टोर स्ट्रीट में'

'तब तो हम पड़ोसी हैं। मुझे अंग्रेजी सीखनी हैं। आप मुझे सिखायेंगे?'

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