लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

160 पाठक हैं

my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


मैंने उन वयोवृद्ध मित्र का बहुतआभार माना। उनकी उपस्थिति में तो मेरा भय क्षण भर के लिए दूर हो गया। पर बाहर निलकने के बाद तुरन्त ही मेरी घबराहट फिर शुरू हो गयी। चेहरा देखकरआदमी को परखने की बात को रटता हुआ और उन दो पुस्तकों का विचार करता हुआ मैं घर पहुँचा। दुसरे दिन लेवेटर की पुस्तक खरीदी। शेमलपेनिक की पुस्तक उसदुकान पर नहीं मिली। लेलेटर की पुस्तक पढ़ी, पर वह तो स्नेल से भी अधिक कठिन जान पड़ी। रस भी नहीं के बराबर ही मिला। शेक्सपियर के चेहरे काअध्ययन किया। पर लंदन की सडको पर चलने वाले शेक्सपियरों को पहचाने की कोई शक्ति तो मिली ही नहीं।

लेवेटर की पुस्तक से मुझे कोई ज्ञान नहीं मिला। मि. पिंकट की सलाह का सीधा लाभ कम ही मिला, पर उनके स्नेह का बड़ालाभ मिला। उनके हँसमुख और उदार चेहरे की याद बनी रही। मैंने उनके इन वचनों पर श्रद्धा रखी कि वकालत करने के लिए फीरोजशाह महेता की होशियारी औऱयाददाशत की वगैरा की जरूरत नहीं हैं, प्रामाणिका और लगन से काम चल सकेगा। इन दो गुणो की पूंजी तो मेरे पास काफी मात्रा में थी। इसलिए दिल में कुछआशा जागी।

के और मेंलेसन की पुस्तक विलायत में पढ़ नहीं पाया। परमौका मिलते ही उसे पढ डालने का निश्चय किया। यह इच्छा दक्षिण अफ्रीका मेंपूरी हुई।

इस प्रकार निराशा में तनिक सी आशा का पटु लेकर मैं काँपते पैरो 'आसाम' जहाज से बम्बई के बन्दरगाह पर उतरा। उस समय बन्दरगाहमें समुद्र क्षुब्ध था, इस कारण लांच (बडी नाव) में बैठकर किनार पर आना पड़ा ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book