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ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


जब हमने अपनी प्रथम उपलब्धियों को प्रकाशित कराया था तो हमें बहुत बड़े व्यंग्य और तिरस्कार का सामना करना पड़ा था। किन्तु हम अपने निश्चय पर अटल हैं। सभी ओर से वे व्यंग्य और तिरस्कार आए। हमें विशेष दुःख उन बौछारों से से हुआ जो प्रमुख इतिहासज्ञों की ओर से की गई। अधिकांश ने तो इस विषय पर टीका-टिप्पणी करने की अपेक्षा प्रत्यक्षः अथवा कानाफूसी द्वारा अपनी ओर से तीव्र घृणा का प्रदर्शन किया। जनसाधारण हमें अविश्वास से देखता रहा। उसने इतिहासकारों की ओर दृष्टिपात किया मानो वे हमारी प्रशंसा और भर्त्सना के लिए उपयुक्त अधिकारी हों।

यह दु:ख का विषय है कि वे विद्वान् जो ताजमहल सम्बन्धी शाहजहाँई पुराण-कथा से प्रतिबद्ध हैं, जिन्होंने या तो स्वयं इस विषय पर कुछ लिखा है, या स्नातकोत्तर छात्रों का उसी घिसी-पिटी लकीर पर मार्गदर्शन किया है, या शैक्षिक एवं आधिकारिक प्रतिष्ठा के कारण, उन्होंने अपनी संकुचित ढर्रे पर स्थिर रहने की प्रवृत्ति प्रदर्शित की। हम पर विघ्नकारी और सुधारविरोधी होने के आक्षेपों की बौछार हुई। अनेक ने सक्रोध कहा कि हमने अपनी मान्यता को सिद्ध नहीं किया। किन्तु वह बड़ा ही अविद्वत्तापूर्ण रुख था। यदि विद्वत्तापूर्ण खोज पर उनकी रुचि होती तो वे इस विषय पर पुनर्विचार करते। यदि उनकी मान्यता ठीक थी तो पुनर्विचार से उनको ही सुविधा होती। क्योंकि हमने जिन छिद्रों की ओर संकेत किया था उन्हें अपने पुराने विचारों द्वारा भरने में उनको सहायता मिल जाती। और वे यदि गलत सिद्ध होते तो उन्हें अपने पूर्व सिद्धान्तों को त्यागना असुविधाजनक न होता। इस प्रकार वे इस सूत्र से मार्गदर्शन प्राप्त करने में असमर्थ रहे कि "यदि आप ठीक मार्ग पर हैं तो आप अपना मस्तिष्क स्थिर रख सकते हैं और यदि गलत मार्ग पर हैं तो उसे विचलित होने से नहीं रोक सकते।"

मौलिक अनुसंधाताओं के लिए एक और सूत्र भी है कि किसी विद्यमान आधार की ओर संकेत किए गए किसी छिद्र को तुरन्त बन्द करने के लिए खोज की जाय, अपेक्षया इसके कि उस पर क्रोध अथवा घृणा व्यक्त करने के, जो पारम्परिक मान्यताओं पर सन्देह व्यक्त करता है। जीर्ण-शीर्ण मान्यताओं पर जो सन्देह व्यक्त करता है उसकी गलतियाँ ढूँढने का यत्न करना न तो नैतिकता कहलाएगी और न विद्वत्ता ही। जिन प्रक्रियाओं द्वारा खोज का निष्कर्ष निकला है उनकी गलतियाँ निकालना और भी बुरा है। क्योंकि हम सब जानते हैं कि जो प्रक्रियाएं अपनाई गई हैं वे रूढ़ियों से परे, यहाँ तक कि अलौकिक भी हो सकती हैं। वास्तव में इस सम्बन्ध में चिंता का विषय तो उसका प्रतिफलन अथवा परिणाम होना चाहिए। बाद में भले ही कहें कि उन्हें उस प्रक्रिया के बारे में बताया जाय किन्तु प्रक्रिया की निन्दा करते हुए निष्कर्ष का परीक्षण न करना मूर्खता है।

यह हमारे सौभाग्य की बात है कि जब हमने अपनी प्रथम खोज का परिणाम प्रकाशित किया था तब से अब तक बहुत समय का अन्तराल बीत गया है और आज हमारा अन्वेषण कम-से-कम कुछ लोगों द्वारा सनक-भरा, कपोल-कल्पित तथा भ्रमपूर्ण अथवा केवल अतिशयोक्ति नहीं माना जाता। 'ताजमहल हिन्दू प्रासाद है' इतना कह देने मात्र से ही बात समाप्त नहीं हो जाती। भारतीय तथा विश्व इतिहास के लिए वह अन्वेषण बड़ा प्रभाव छोड़नेवाला है।

आज तक ताजमहल को बड़े गलत ढंग से इण्डो-अरब शिल्प का रहस्यमय पुष्प माना जाता रहा है। अब जब हमने इसे प्राचीन भारतीय भवन सिद्ध कर दिया है तो पाठक हमारी अन्य पुस्तक 'भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें' में वर्णित तथ्यों को कुछ अधिक आदर और सम्मान देते हुए सभी भारतीय मध्ययुगीन मस्जिदें और मकबरे हथियाकर, दुरुपयोग किए गए हिन्दू प्रासाद और मन्दिर ही स्वीकार करने लगे हैं। इस प्रकार ग्वालियर में मुहम्मद गौस का मकबरा, फतेहपुर सीकरी में सलीम चिश्ती की मजार, दिल्ली में निजामुद्दीन की कब्र, अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा सभी प्राचीन हिन्दू भवन हैं जिन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हथियाकर दुरुपयोग किया।

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

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