इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
प्रथमत: हमें कीन को बताने दीजिए कि टैवर्नियर का कथन किस प्रकार उचित है। कीन यह नहीं जानता कि ताजमहल हिन्दू भवन था, शाहजहाँ को उसमें यह करने के अतिरिक्त कुछ नहीं था कि इसके भूगर्भ के मध्यवर्ती कक्ष में गड्ढा खोदकर उसमें मुमताज़ को दफनाए। अतः टैवर्नियर द्वारा भवन का निर्माण आरम्भ होते देखने के लिए १६३०-३१ में भारत में होने की आवश्यकता नहीं थी। टैवर्नियर के इस कथन का कि 'उसने भवन का निर्माणारम्भ तथा समापन-कार्य देखा' अभिप्राय, जैसाकि हम पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं, कि उसने ताजमहल की विभिन्न ऊँचाइयों पर शाहजहाँ के श्रमिकों को कुरान की आयतें खोदने के लिए बाँधते देखा, यह कार्य किसी भी समय आरम्भ और पूर्ण हो सकता था, और इसका आरम्भ और समापन उस समय हुआ जब टैवर्नियर भारत में था तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। अत: टैवर्नियर का कथन उचित है।
परन्तु कीन की टिप्पणी से जो एक रोचक तथ्य उभरता है वह यह कि कोई भी निश्चित रूप से यह नहीं जान सकता कि टैवर्नियर कब भारत आया और कितने समय के लिए आया? जबकि हमने महाराष्ट्रीय ज्ञान-कोष का उद्धरण देते हुए बताया है कि टैवर्नियर १६४१ से १६६८ तक भारत में रहा। तब कीन उल्लेख करता कि टैवर्नियर केवल १६५१-१६५५ में कभी भारत में रहा होगा। दूसरी ओर एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में उल्लेख है कि टैवर्नियर कई बार भारत में क्रमशः रहा है। इससे यह संकेत मिलता है कि टैवर्नियर कुछ भी प्रामाणिक नहीं है। जो कुछ उसने उल्लेख किया है वह सत्य अथवा पूर्ण सत्य नहीं है। यदि वह भारत में चार वर्ष से भी कम रहा (१६५१-१६५५ के मध्य, इसमें समुद्र-यात्रा में आवागमन के मास भी सम्मिलित हैं) तो उसका यह कथन सत्य है कि "१० हजार श्रमिकों ने २२ वर्ष की अवधि में निरन्तर कार्य किया और उसकी उपस्थिति में कार्यारम्भ और समापन हुआ?" यह कथन इंगित करता है कि टैवर्नियर ने भी ताजमहल के सम्बन्ध में इतिहास-जगत् को धोखा दिया है। मुस्लिम धोखे को जिसे उसने केवल सुना ही था किन्तु उसने तो उसे 'नूतन समाचार' के रूप में भावी पीढ़ी के लिए लिख दिया।
टैवर्नियर के लेख में चार बातें विचारणीय हैं : क्रमशः (१) शाहजहाँ ने तासी मकान (अर्थात् ताजमहल) के निकट मुमताज को सप्रयोजन दफनाया था। (२) मचान बंधवाने के लिए उसे लकड़ी बिल्कुल नहीं मिली। (३) समस्त कार्य की अपेक्षा मचान बाँधने में अधिक लागत आई। (४) बीस सहस्र श्रमिकों ने निरन्तर बाईस वर्ष तक कार्य किया।
उपरिलिखित कथनों में पहले तीन बातों से स्पष्ट हो जाता है कि मुमताज़ को दफनाने के लिए शाहजहाँ ने पूर्वनिर्मित ताजमहल हथियाया था। चौथी बात जिस पर पारम्परिक इतिहास-लेखक बल देते हैं इसलिए भी महत्त्वहीन है। जब हम विचार करते हैं कि टैवनियर जो भारत में केवल चार वर्ष (१६५१-१६५५) रहा यह नहीं कह सकता कि जो कार्य उसके सम्मुख प्रारम्भ होकर सम्पन्न हुआ उसमें २२ वर्ष लगे।
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