इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
बाबर भारत में नवागन्तुक होने के कारण अपनी पश्चिम एशिया स्थित मातृभूमि के प्रति अनुरक्त था, इसलिए उसने इच्छा व्यक्त की थी कि उसको काबुल के समीप दफनाया जाए। तदनुसार उसका शव वहाँ ले जाया गया। यदि उसकी ऐसी इच्छा न होती तो सम्भव है मुसलमानों की भारत में अपहरणकारी प्रवृत्ति के अनुसार ताजमहल में ही, जहाँ उसकी मृत्यु हुई थी, उसे दफनाया जाता। यदि वह वहाँ दफनाया गया होता तो हमारा इतिहास यह बतलाता कि हुमायूँ ने अपने पिता के प्रति महान् धार्मिक आदर भावना के वशीभूत उसके लिए ताजमहल जैसे अद्भुत मकबरे का निर्माण कराया।
और यदि मुमताज़ की अपेक्षा शाहजहाँ की दूसरी पत्नी सरहन्दी बेगम, जो कि वर्तमान में ताजमहल के बाहरी भाग में दफन है, वह १६३० में मरी होती तो तब . कदाचित् यह कहा जाता कि हथियाये गए हिन्दू प्रासाद के गुम्बद वाले केन्द्रीय कक्ष में उसे दफनाया गया था। उस स्थिति में हमारा इतिहास मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति शाहजहाँ के प्रेम का कपोल-कल्पित वर्णन करता।
इस प्रकार ताजमहल एक बार सन् १५३० में बाबर का मकबरा बनने से बचा और फिर एक बार १०० वर्ष बाद सरहन्दी बेगम के मकबरे के रूप में भी भावी पीढ़ी में प्रख्यात होने से बचा। यदि ऐसा हो गया होता तो हमारा इतिहास और पर्यटक-साहित्य हुमायूं के अपने पिता बाबर के प्रति अथवा शाहजहाँ का मुमताज़ की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति अगाध प्रेम का कोई-न-कोई उपयुक्त स्पष्टीकरण रच ही लेता। ऐसी ये कपोल-कल्पनाएँ हैं जो वर्तमान मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अपने काल्पनिक अनुमानों को प्रमाणित करने के लिए दुलकी चलाती हैं।
प्रथम मुगल बादशाह बाबर ताजमहल में रहा था और वहीं उसकी मृत्यु हुई। इसकी पुष्टि बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूँनामा, एनैट एस. बेवरिज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित हुमायूँ के इतिहास, से भी होती है। गुलबदन बेगम के इतिहास के अनूदित संस्करण पृष्ठ १०९ और ११० पर अंकित है कि (बाबर की) "मृत्यु सोमवार २६ दिसम्बर, १५३० को हुई। उन्होंने हमारी बुआओं और माताओं को इस बहाने से वहाँ से बाहर भेज दिया कि चिकित्सक देखने के लिए आ रहे हैं। सब उठ गए। वे सभी बेगमों और मेरी माताओं को बड़े भवन में ले गए।" (पृष्ठ १०९ पर अंकित टिप्पणी में 'ग्रेट हाउस को प्रासाद के रूप में लिखा है।)
"मृत्यु को गुप्त रखा गया। शुक्रवार २९ दिसम्बर, १५३० को हुमायूँ सिंहासन पर बैठा।" पृष्ठ ११० पर अंकित टिप्पणी कहती है-"बाबर का शव पहले वर्तमान ताजमहल से नदी के दूसरी ओर राम अथवा आराम बाग में रखा गया था। बाद में उसको काबुल ले जाया गया।"
उपरिलिखित उद्धरण से स्पष्ट है कि बाबर की मृत्यु ताजमहल में हुई थी। जब यह विदित हो गया कि उसकी मृत्यु हो गई तो हरम की औरतें जो अन्यत्र रहती थी, प्रासाद अर्थात् ताजमहल में लाई गईं।
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