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स्मरदीपिका
स्मरदीपिका
प्रकाशक :
चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस |
प्रकाशित वर्ष : 2013 |
अनुवादक :
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संपादक :
6583 |
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 15341
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आईएसबीएन :9788170801656 |
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काम शास्त्र का अद्भुत ग्रंथ
विनिवेदन
कामशास्त्र लेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। मानव जीवन को सुव्यवस्थित बनाने के लिये प्रजापति ब्रह्मा ने धर्मार्थकाम के साधनभूत जिस आदि शास्त्र का प्रवचन किया, उसमें से मनु ने मनुस्मृति, बृहस्पति ने अर्थशास्त्र तथा भूतभावन भगवान् शंकर के अनुचर नन्दी ने कामविषयक कामसूत्र की रचना की। अतः कामशास्त्र प्रवचन की परम्परा सृष्टि के प्रारम्भ से ही है; क्यों न होती, यह काम ही तो सृष्टि का मूल है, जब सृष्टि ही मैथुन से है, तब उस मैथुन के विषय में जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, जिसका प्रवचन स्वयम्भू ब्रह्मा ने आवश्यकतनुसार पहले ही कर दिया है। ब्रह्मा के प्रवचन में से काम सार ग्रहण कर आचार्य नन्दी ने एक हजार अध्यायों में इसका प्रणयन किया, फिर बाभ्रव्य ने ५०० अध्यायों में संक्षेपण किया। फिर धीरे-धीरे ये सब अध्याय छितरा गये और अन्त में आचार्य वात्स्यायन ने सबको सङ्कलित कर सात अध्यायों वाले कामसूत्र की रचना की। जो आज सबसे अधिक ख्यातिप्राप्त कामशास्त्र है।
इसके बाद रति रहस्य, अनङ्गरङ्ग, कुट्टिनीमतम्' आदि अनेकों कामशास्त्रीय ग्रन्थों का प्रणयन हुआ, जो सभी प्रकाश में आ चुके हैं।
आचार्य मीननाथ रचित स्मरदीपिका एक अद्भुत कामशास्त्रीय कृति है। स्मरदीपिका का अर्थ है- कामदेव को जगाने वाली। अतः यह यथा नाम गुणवाली है। इसमें स्त्री के अन्तर्गत कामभाव को जगाने वाले समस्त विधान दिये गये हैं; क्योंकि स्त्री के अन्तर्गत जब तक पहले पूर्णरूप से काम को जगाया नहीं जायेगा, तब तक सम्भोग में उसे सन्तुष्ट करना असम्भव होगा। चिरकाल से सम्भोग में पुरुष से पूर्व स्त्री की सन्तुष्टि की एक विकट समस्या रही है। सम्भोग में स्त्री को असन्तुष्टि स्त्री के स्वभाव को चिड़चिड़ा बनाने वाली तथा हिस्टीरिया जैसे रोगों की जन्म दात्री एवम् अन्य बहानों को लेकर अनेक पारिवारिक विवादों की जननी है। इसीलिये प्रायः सभी कामशास्त्रियों ने पुरुष पूर्व स्त्री सन्तुष्टि के अनेकों उपाय एवम् औषधियों के सेवन बताये हैं, जो सभी आचार्य मीननाथ ने इस लघुकायकलेवर ग्रन्थ में प्रस्तुत किये हैं; परन्तु वे सभी सफलता की कसौटी पर पूर्णत: खरे नहीं उतरे हैं। सम्भोग के आनन्दातिरेक की उत्तेजना में सभी उपाय विफल हो जाते हैं और पुरुष महाशय शीघ्र स्खलित होकर स्त्री को आहें भरने को विवश कर देते हैं, तथा औषधियों का सेवन शरीर पर विपरीत प्रभाव भी डालता है। अत: आचार्य मीननाथ ने इस स्मरदीपिका में योग क्रिया द्वारा स्तम्भन के उपाय बतायें हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं। अतः सम्भोग की मूल समस्या पुरुष पूर्व स्त्री सन्तुष्टि का निदान इस पुस्तक में उपलब्ध है।
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