श्रंगार-विलास >> कामतन्त्रकाव्यम् कामतन्त्रकाव्यम्डॉ. दलवीर सिंह चौहान
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काम शास्त्र का अद्भुत ग्रंथ
निवेदन
जैसी जस भवितव्यता, तैसी मिले सहाय ।
आपुहि आवत ताहि पहि, ताहि तहाँ ले जाय ।।
विद्यार्थी जीवन से ही कुछ लिखने के भाव हृदय द्वार पर दस्तक लगा कर बारबार प्रेरित करते थे कि कुछ लिखूं। बहुत कुछ लिखा; परन्तु स्वयं प्रकाशित कराकर लोकार्पित कराने की दुष्करता तथा प्रकाशक के सहयोग का अभाव निरन्तर अनुत्साहित करता रहा। फलत: बहुत-सी समाजोपयोगी कवितायें अपने लक्ष्य तक न पहुँचकर मात्र स्वान्तः सुखाय' ही बनकर रह गयीं। लीक से हटकर लिखने के कारण गतानगतिकलोक ने भी सहयोग नहीं किया।
आवश्यकतानुसार महाकवि विल्हण विरचित अंद्भुत कामशास्त्रीय गीतिकाव्य “वीरसिंह चरितम्'' की उपेक्षित पाण्डुलिपि का सम्पादन एवं हिन्दी अनुवाद कर स्वयं प्रकाशित कराया। प्रचाराभाव से लोकार्पित न हो सकी। दुर्भाग्य से जीवन का अमूल्य समय कालकवलित होता चला गया। चिरकाल के बाद महामाया मां सरस्वती की प्रेरणा से, जब चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी के प्रकाशक श्री ब्रज मोहन दास से मिला, तो उनके सौजन्य से वीरसिंह-चरितम् का पुन: प्रकाशन तो हआ ही, साथ ही श्री पण्डित ढुण्ढिराजशास्त्री द्वारा सम्पादित कामकुञ्जलतान्तर्गत ९ पाण्डुलिपियों के सटीक हिन्दी अनुवाद का कार्य प्राप्त हुआ, जिनमें से स्मरदीपिका, रतिकल्लोलिनी, बाभ्रव्यकारिका और पुरूरवा का कामसूत्र प्रकाशित हो चुके हैं तथा कादम्बरीस्वीकरणकारिका तथा कादम्बरी स्वीकरण सूत्र प्रकाशनार्थ प्रसतुत किये जा चुके हैं। यह पुस्तक कामतन्त्रकाव्यम् सटीक हिन्दी अनुवाद हेतु प्रकाशित की जा रही है।
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